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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ बारसक-भय-दुगुंछाणं जह० पदे. जहण्णुक्क० एगस० । अज. जह० बावीसं सागरोवमाणि, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि । ___$२६. तिरिक्रवगदीए तिरिक्खेसु मिच्छत्त०--बारकसाय--भय--दुगुंचित्थिणQसयवेदाणं जह० पदे. जहण्णुक्क० एगस० । अज० जह० खुद्दाभबग्गहणं, उक्क० अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं जह० पदे० जहण्णुक० एगस० । अज० जह० एगस०, उक० तिण्णि पलिदोवमाणि पलिदो० असंखे०भागेण सादिरेयाणि । अणंताणु० चउक० जह० जहष्णुक० एगस० । अज० जह० एगस०, उक्क. अणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । पुरिसवेद-हस्स-रदि-अरदिसोगाणं जह० पदे० जहण्णुक्क० एगस० । अज० जह० अंतोमु०, उक्क० अणंतकाल - मसंखे०पो०परियट्टा। इसी प्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भङ्ग जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है। बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल बाईस सागर है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। विशेषार्थ—सातवीं पृथिवीमें ओघके समान स्वामित्व है, इसलिए यहाँ मिथ्यात्व आदि बारह प्रकृतियोंकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त बन जानेसे वह उक्त कालप्रमाण कहा है। सम्यक्त्वद्विकका भङ्ग उक्त प्रकृतियोंके समान है यह स्पष्ट ही है। मात्र इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका उद्वेलनाकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय बन जानेसे वह अलगसे कहा है । बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी जघन्य प्रदेशविभक्ति उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें होती है, इसलिए इनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल बाईस सागर कहा है। इन अट्ठाईस प्रकृतियोंकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिका उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है यह स्पष्ट ही है। $ २६. तिर्यञ्चगतिमें तिर्यश्चोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी जघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल क्षल्लक भवग्रहण प्रमाण है और उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनके बराबर है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिक तीन पल्य है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनके बराबर है । पुरुषवेद, हास्य, रति, अरति और शोककी जघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अजघन्य प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अनन्त काल है, जो असंख्यात पुद्गल परिवर्तनके बराबर है। विशेषार्थ-तियंञ्चोंकी जघन्य भवस्थिति क्षुल्लकभवग्रहणप्रमाण है और जघन्य भवस्थितिवाले जीवोंके मिथ्यात्व आदि प्रथम दण्डकमें कही गई प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेशविभक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org:
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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