SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 445
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ भावत्थो। ६६८२. सपहि एत्थ लद्धपमाणाणुगमे भण्णमाणे पढमवारं चढमाणेण लद्धं सव्वसंचयं ठविय पुणो चउहि रूवेहि तम्हि गुणिदे एयसमयपबद्धस्स संखेजदिभागो आगच्छइ, सखेज्जवस्सियहिदिब धसंचयस्सेव पाहणियादो । एवं कोहसंजलणस्स पयदुक्कस्ससामित्तं परूविय संपहि एसो चेव णिसेयडिदिपत्तयस्स वि सामिओ होइ त्ति जाणावणमुत्तरमुत्तमोइण्णं- णिसेयहिदिपत्तयं च तम्हि चेव । ६८३. तम्हि चेव हिदिविसेसे पुव्वणिरुद्ध णिसेयहिदिपत्तय पि उक्कस्सं होइ, दोण्हमेदेसि हिदिपत्तयाणं सामित्तं पडि विसेसादसणादो। णवरि दव्वविसेसो जाणेयव्यो, तत्तो एदस्स ओकड्डुक्कड्डणाहि गंतूण पुणो वि तत्थेव पदिददव्वमेत्तेणाहियभावोवलंभादो। ® उक्कस्सयमुदयहिदिपत्तयं कस्स ? ६८४. सुगमं । स्वामित्व होता है यह इसका भावार्थ है । ६६८२. अब यहाँ लब्धप्रमाणका विचार करते हैं पहली बार उपशमश्रेणिपर चढ़ने और उतरनेसे जो संचय प्राप्त हो उस सबको स्थापित करे। फिर उसे चारसे गुणा करनेपर एक समयप्रबद्धका संख्यातवां भाग प्राप्त होता है, क्योंकि यहाँ पर संख्यात वर्षप्रमाण स्थितिबन्धका प्राप्त हुआ संचय ही प्रधान है। इसप्रकार क्रोधसंज्वलनके प्रकृत उत्कृष्ट स्वामित्वका कथन करके अब यही निषेकस्थितिप्राप्तका भी स्वामी होता है यह बतलानेके लिये आगेका सूत्र आया है * उत्कृष्ट निषेकस्थितिप्राप्त द्रव्यका भी वही स्वामी है । ६६८३. जो स्थिति यथानिषेकके उत्कृष्ट स्वामित्वके समय विवक्षित थी उसी स्थितिविशेषमें निषेकस्थितिप्राप्त भी उत्कृष्ट होता है, क्योंकि इन दोनों ही स्थितिप्राप्तोंमें स्वामित्वकी अपेक्षा कोई भेद नहीं देखा जाता। किन्तु द्रव्यविशेषको जान लेना चाहिये, क्योंकि यथानिषेकस्थितिमेंसे अपकर्षण-उत्कर्षणके द्वारा जो द्रव्य व्ययको प्राप्त हो जाता है वह इसमें पुनः जहाँका तहाँ आ जाता है इसलिये यथानिषेककी अपेक्षा इसमें इतना द्रव्य अधिक पाया जाता है । विशेषार्थ-पिछले सूत्रमें यथानिषेकस्थितिप्राप्तका उत्कृष्ट स्वामी बतला आये हैं। उसीप्रकार निषेक स्थितिप्राप्तका भी उत्कृष्ट स्वामी जान लेना चाहिये, इसकी अपेक्षा इन दोनों में कोई अन्तर नहीं है यह इस सूत्रका भाव है। किन्तु इतनी विशेषता है कि यथानिषेकस्थितिप्राप्तका जितना उत्कृष्ट द्रव्य होता है उससे निषेकस्थितिप्राप्तका उत्कृष्ट द्रव्य अधिक होता है, क्योंकि यथानिषेकमें अपकर्षण उत्कर्षणके द्वारा जिस द्रव्यकी हानि हो जाती है इसमें यह द्रव्य पुनः जहाँका तहाँ अा जाता है। * उत्कृष्ट उदयस्थितिप्राप्त द्रव्यका स्वामी कौन है ? 5६८४. यह सत्र सुगम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy