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________________ ४१६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ णाणत्तं । एवमुवरि चढिय हेहा ओदरदूर्णतोमुहुत्तेण मिच्छत्तं गंतूण मणुस्साउअं बघिय कमेण कालं काऊण मणुसेसुववण्णो अंतोमुहुत्तब्भहियअहवस्साणमुवरि सम्मत्तं संजमं च जुगवं पडिवज्जिय सव्वलहुँ कसायउवसामणाए अब्भुहिदो । एत्थ वि संचयविही पुव्वं व परूवेयव्वा । णवरि चढमाणो जाव अप्पणो चरिमहिदिबंधो ताव संचयं लहदि त्ति वत्तव्वं । ओदरमाणो वि चढमाणस्स जम्मि चत्तारिमासमेत्तो चरिमहिदिबधो जादो तमुद्देसमंतोमुहुत्तेण पावेदि ति अट्टमासमेत्तहिदिब धमाढवेइ ताधे पुव्विल्लचरिमहिदिब धसंचयस्स अद्धमेत्तसंचयमहियारहिदी लहइ । एत्तो पहुडि पुवविहाणेण संचयं करेमाणो हेढा ओयरिय अंतोमुहुत्तेण पुणो वि उवसमसेढिमारूढो । एत्थ वि पुर्व व संचयं कादूगोदरमाणस्स अणियट्टिअद्धाए अब्भंतरे जाधे तप्पाओग्गसंखेज्जरूवगुणिदोकडडुक्कडणभागहारमेत्तो हिदिव'धो जादो ताधे तदित्थहिदि बंधमाणेण अहियारगोवुच्छाए उवरि पढमणिसेयं कादणुवरि पदेसरयणा कदा। एदस्सुवरि असंखेजगुणमण्णेगं हिदिबधं बधमाणस्स संचयं ण लहामो, अहियारहिदीए आबाहाब्भंतरे पवेसियत्तादो। एसो च अधाणिसेयउक्कस्ससंचओ पुव्वमुवसमसेटिं चढमाणस्सोदरमाणस्स वा तम्मि भवे आबाहाभंतरमपविसिय आगदो संपहि चेव पविहो। कथमेदं परिच्छिज्जदे ? चढमाणोदरमाणअपुवकरण-अणियट्टि शेष विधिमें कोई भेद नहीं है। इस प्रकार ऊपर चढ़कर और नीचे उतरकर अन्तर्मुहूर्तमें यह जीव मिथ्यात्वमें गया और मनुष्यायुको बाँधकर क्रमसे मरा और मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। फिर अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्षके बाद सम्यक्त्व और संयमको एक साथ प्राप्त करके अतिशीघ्र कषायोंका उपशम करनेके लिये उद्यत हुआ। यहाँपर भी सञ्चयविधिका कथन पहलेके समान करना चाहिये। किन्तु इतनी विशेषता है कि चढ़नेवाला जीव अपने अन्तिम स्थितिबन्धके प्राप्त होनेतक सञ्चय करता रहता है यहाँ इतना कथन करना चाहिए। उतरनेवाला जीव भी चढ़नेवाले जीवके जिस स्थानमें चार माह प्रमाण अन्तिम स्थितिबन्ध होता है उस स्थानको अन्तर्मुहूर्तमें प्राप्त करता है, इसलिये आठ माह प्रमाण स्थितिबन्धका आरम्भ करता है। उस समय पूर्वोक्त अन्तिम स्थितिबन्धके सञ्चयका आधा संचय विवक्षित स्थितिमें प्राप्त होता है। अब यहाँसे आगे पूर्वविधिसे सञ्चय करता हुआ नीचे उतरकर अन्तर्मुहूर्त बाद फिर भी उपशमश्रेणिपर चढ़ता है। यहाँ पर भी पहलेके समान सञ्चय करके उतरनेवाले जीवके अनिवृत्तिकरण कालके भीतर जब तद्योग्य संख्यात अङ्कोंसे गुणित अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारप्रमाण स्थितिबन्ध होता है तब उस स्थितिको बाँधनेवाला जीव अधिकृत गोपुच्छामें प्रथम निषेकका निक्षेप करके प्रदेशरचना करता है। फिर इसके ऊपर असंख्यातगुणे अन्य स्थितिबन्धको बाँधनेवाले जीवके अधिकृत स्थितिमें सञ्चय नहीं प्राप्त होता, क्योंकि तन्न विवक्षित स्थिति अबाधाकालके भीतर पाई जाती है। यह यथानिषेकका उत्कृष्ट संचय जो जीव पहले उपशमश्रेणिपर चढ़ा था और उतरा था उसके उसी भवमें आबाधाके भीतर नहीं प्रविष्ट होकर प्राप्त हुआ था किन्तु अब प्रविष्ट हुआ है। शंका-यह किस प्रमाण से जाना? समाधान—चढ़ते समयके और उतरते समयके अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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