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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ १५. पढमाए जाव छहि ति मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० उक्क० पदेस० जहण्णुक० एगस । अणुक्क० जह० पढमाए दसवस्ससहस्साणि समऊणाणि । कुदो समऊणत्तं ? उप्पण्णपढमसमए पदेसस्स जादुक्कस्ससंतत्तादो । सेसासु पुढवीसु जह० सगसगजहण्णहिदीओ समऊणाओ, उक्क. सगसगुक्कस्सहिदीओ। एवमणंताणु०चउक्क०-सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं । णवरि अणुक्क० ज० एगस० । सत्तमीए णिरओघं । णवरि इत्थि-पुरिस-णउंसयवेदाणमुक्क० पदे० जहण्णुक० एग० । अणुक्क० ज. पावीसं सागरोवमाणि, उक्क० तेत्तीसं साग० । अणंताणु० चउक्क० उक्क० पदे० जहण्णुक० एग० । अणुक्क० ज० अंतो०। कुदो ण एगसमओ ? सत्तमाए पुढवीए सासणगुणेण णिग्गमाभावादो । उक० तेतीसं सागरो । समयमें नरकमें उत्पन्न होता है उसके वहाँ इसकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति एक समय तक देखी जाती है, अत: इन दोनों प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय कहा है। इसका उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है यह स्पष्ट ही है। तीनों वेदोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति नरकमें उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें सम्भव है, इसलिए इसका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा है। तथा नरककी जघन्य स्थितिमेंसे इस एक समयको कम कर देने पर तीनों वेदोंकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय कम जघन्य आयुप्रमाण होता है और इसका उत्कृष्ट काल नरककी उत्कृष्ट अायुप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। ६ १५. पहली पृथिवीसे लेकर छठी पृथिवी तकके नारकियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल प्रथम पृथिवीमें एक समय कम दस हजार वर्ष है। शंका-एक समय कम क्यों है ? समाधान-क्योंकि वहाँ उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें ही उत्कृष्ट सत्त्व होता है। शेष पृथिवियोंमें उक्त प्रकृतियोंकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय कम अपनी-अपनी जघन्य स्थितिप्रमाण है और उत्कृष्ट काल छहोंमें अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। इसी प्रकार अनन्तानबन्धीचतक. सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी अपेक्षा काल जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल एक समय है। सातवीं पृथिवीमें सामान्य नारकियोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। तथा अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल बाईस सागर है और उत्कृष्ट काल तंतीस है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । शंका-एक समय क्यों नहीं है ? समाधान-क्योंकि सातवीं पृथिवीसे सासादन गुणस्थानके साथ निर्गमन नहीं होता है। तथा उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। विशेषार्थ-प्रथमादि छह पृथिवियोंमें गुणितकर्माशविधिसे आये हुए जीवके नरकमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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