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________________ २२६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ भागहाणि सव्वदा । एवमणंताणु०४ । गवरि असंखे०गुणहाणि. जह० एगस०, उक्क० आवलि. असंखे० भागा। बारसक०-पुरिस०-भय-दुगुंछा० असंखे० भागवडिहाणि सव्वद्धा । अवहि० ज० एगस०, उक० आवलि. असंखे०भागो। हस्स-रइअरइ-सोगाणं असंखे०भागवडि-हाणि सव्वदा। गवरि सव्व जम्हि श्रावलि. असंखेजो भागो तम्हि संखेज्जा समया । एवं जाव अणाहारि ति । ६४०६. अंतराणुगमेण दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य। ओघेण मिच्छ०-अहक० असंखे०भागवडि-हाणि-अवहि० पत्थि अंतरं । असंखे०गुणहा० ज० एगस०, उक्क० छम्मासा । सम्म०-सम्मामि० असंखे०भागहा० पत्थि अंतरं । असंखे०भागवड्डि--असंखे०गुणवडि--हाणि--अवत्त० जह० एगस०, उक्क० चवीसमहोरते सादि। अणंताणु०४ असंखे० भागवड्डि--हाणि--अवहि० गत्थि अंतरं । संखे०भागवडि-संखे०गुणवडि-असंखे०गुणवडि-हाणि-अवत्त० जह० एगस०, उक्क० चवीसमहोरत्ते साधिगे। चदुसंजल० असंखे०भागवडि-हाणि-अवहि. पत्थि अंतरं । संखेजगुणवडि-असंखे गुणवडि-हाणि० ज० एगस०, उक. छम्मासा। णवरि rrrrrrrrrrrrrrrrrr सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातभागहानिवाले जीवोंका काल सर्वदा है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अपेक्षासे काल जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि असंख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है। इतनी विशेषता है कि जहाँ श्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण काल कहा है वहाँ सर्वार्थसिद्धिमें संख्यात समय काल है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। इसप्रकार काल समाप्त हुआ। ६४०६. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है--ओघ और आदेश। श्रोघसे मिथ्यात्व और आठ कषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिका अन्तर काल नहीं है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका अन्तर काल नहीं है। असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन-रात है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिका अन्तरकाल नहीं है । संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक चौबीस दिन-रात है। चार संज्वलनोंकी असंख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागहानि और अवस्थितविभक्तिका अन्तर काल नहीं है। संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिका जघन्य अन्तर एक समय है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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