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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसयिहत्ती ५ भागवडि-हाणि० सम्बद्धा । अवहि० ज० एगस०, उक्क० आवलि• असंखे०भागो। सम्म०-सम्मामि० असंखे० भागहा. सव्वदा । असंखे गुणहाणि-अवत्त० जह. एगस०, उक० आव० असंखे० भागो। असंखे भागवडि-असंखे० गुणवडि• जह० अंतोमु०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। अणंताणु०४ असंखे० भागवडि०-हाणिक सव्वद्धा । संखे०भागवडि--संखे० गुणवडि--असंखे०गुणहाणि--अवहि०-अवत्त० जह० एगस०, उक्क० आवलि. असंखे० भागो। असंखेगुणवडि० ज० एगस०, उक० पलिदो० असंखे० भागो। इस्थि०-णस०-हस्स-रइ-अरइ-सोगाणं असंखे०भागवडिहाणि सव्वद्धा । एवं सत्तसु पुढवीसु। . ४०२. तिरिक्खगदी० तिरिक्खा० ओघं । णवरि सेढिपदाणि मोत्तण । पंचिंदियतिरिक्रवतिए णारयभंगो । पंचिंतिरि० अपज्ज० मिच्छत्त०-सोलसक०-भयदुगुंछा० असंखे०भागवड्डि--हाणि सव्वद्धा । अवहि० ज० एगस०, उक्क० श्रावलि. असंखे०भागो । सम्म०-सम्मामि० असंखे०भागहाणि० सव्वदा । असंखे०गुणहाणि. जह० एगसमओ, उक्क० आव० असं० भागो। सत्तणोक० असंखे० भागवडि-हाणि. सव्वद्धा। wrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr. असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल श्रावलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है। असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातगुणवृद्धिका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है। संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि, अवस्थित और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातगुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें जानना चाहिए। ६४०२. तिर्यश्चगतिमें तिर्यञ्चोंमें ओघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि श्रेणिसम्बन्धी पदोंको छोड़कर कहना चाहिए। पञ्चन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें नारकियोंके समान भङ्ग है। पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व की असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। सात नोकषायोंकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका काल सर्वदा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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