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________________ २१६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ ३६०. परिमाणाणु० दुविहो णि सो-ओघेण आदेसेण य। ओघेण मिच्छ०-बारसक०-भय-दुगुंछा० अवहि. असंखे०भागवडि-हाणिविह. केत्ति ? अणंता । असंखे०गुणहाणि० चउसंज० संखे०गुणवडि० संखेज्जा । णवरि लोभसंज.. भय-दुगुंछा० असंखे० गुणहाणि. पत्थि। सम्म० सम्मामि० सव्वपदवि० असंखेज्जा । अणंताणु०४ अबहि०-असंखे०भागवडि-हाणि० के० ? अणंता। सेसपदा० असंखेज्जा। इथि०-पुरिस०-णस० असंखे० भागवडि-हाणि० केत्ति ? अणंता । पुरिस० अवहि० असंखेज्जा । सव्वेसिमसंखे गुणहाणि पुरिस० संखे०गुणवड्रि० संखेज्जा । हस्स-रइ-अरइ-सोगा. असंखे० भागवडि-हाणि० केत्ति० १ अणंता । एवं तिरिक्खा। णवरि सेढिपदाणि मोत्तण वत्तव्वं ।। ३६१. आदेसेण णेरइय० अहावीसं पयडीणं सव्वपदा० केत्ति ? असंखेज्जा । एवं सव्वणेरइय० सव्वपंचिंदियतिरिक्व० देवगई० देवा भवणादि जाव उवरिमगेवज्जा त्ति । मणुसगदीए एवं चेव । गवरि सेढिपदा मिच्छ० असंखे०गुणहाणि० अणंताणु० पंचपदा संखेज्जा । पंचिं०तिरिक्ख अप० २८ पयडीणं सव्वपदा असंखेज्जा । मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु जाणि पदाणि अत्थि ताणि संखेजा। मणुसअपज्ज० २८ पय० सव्वपदा केत्तिया ? असंखेज्जा। अणुद्दिसादि जाव ६३६०. परिमाणनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है--ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साकी अवस्थित, असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिविभक्तिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। असंख्यातगुणहानिवाले और चार संज्वलनोंकी संख्यातगुणवृद्धिवाले जीव संख्यात हैं। इतनी विशेषता है कि लोभसंज्वलन, भय और जुगुप्साकी असंख्यातगुणहानि नहीं है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी सब पदविभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी अवस्थितविभक्ति, असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। शेष पदवाले जीव असंख्यात हैं। स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। पुरुषवेदकी अवस्थितविभक्तिवाले जीव असंख्यात हैं। सबकी असंख्यातगुणहानिवाले और पुरुषवेदकी संख्यातगुणवृद्धिवाले जीव संख्यात हैं। हास्य, रति, अरति और शाककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिवाले जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। इसीप्रकार तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि श्रेणिसम्बन्धी पदोंको छोड़कर कथन करना चाहिए। $३६१. श्रादेशसे नारकियोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंके सब पदवाले जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसीप्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तियश्च, देवगतिमें देव और भवनवासियों से लेकर उपरिम वेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए। मनुष्यगतिमें इसीप्रकार जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनमें श्रेणिसम्बन्धी पदवाले, मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानिवाले और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके पाँच पदवाले जीव संख्यात हैं। पञ्चन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्तकोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंके सब पदवाले जीव असंख्यात है। मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें जो पदवाले हैं वे संख्यात हैं । मनुष्य अपर्याप्तकोंमें अट्ठाईस प्रकृतियोंके सब पवाले जीव कितने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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