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________________ २०० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ उक्क० तेतीसं सागरोवमाणि । संखे०भागवडि०-संखे० गुणवडी० ज० एगस०, उक्क० आवलि. असंखे०भागो। असंखे गुणवड्डी० ज० एगस०, उक्क. अंतोमु० । असंखे० गुणहाणि-अवत्त० ज० उक्क० एगस० । अवहि० ओघं । बारसक०-पुरिसवेद. भय-दुगुंछ. असंखे०भागवडि-हाणी. जह० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे०भागो। अवहि० ज० एगस०, उक्क० सतह समया । इत्थि०-गqस० असंखे०भागवड्डी० जह० एगस०, उक्क. अंतोमु० । असंखे० भागहाणी. जह० एगस., उक्क० तेत्तीसं सोगरोवमाणि । हस्स-रइ-अरइ-सोगाणं असंखे० भागवडि-हाणी. जह० एगस०, उक्क० अंतोमु० । एवं भवणवासियादि जाव उवरिमगेवज्जा ति । णवरि जत्थ तेतीसं सागरो० तत्थ सगहिदी भाणियन्वा । ६३६६. अणुदिसादि जाव सव्वहा ति मिच्छत्त० असंखेजभागहाणी. जहण्णुक्क० जहण्णुक्कस्सहिदीओ। अणंताणु०४ असंखे० भागहाणी० जह• आवलिया दुसमयूणा, उक्क० सगहिदीओ। असंखे० गुणहाणी. जह० उक्क० एगस० । सम्म असंखे० भागहो. जह० एगस०. उक्क० सगहिदीओ। सम्मामि० असंखे० भागहाणी. जह. जहण्णहिदी, उक्क० उक्कस्सहिदीओ। बारसक०-पुरिस०-भय-दुगुंछा० असंखे० और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। असंख्यातगुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। अवस्थितविभक्तिका भङ्ग अोधके समान है। बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थितविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल सात आठ समय है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी असंख्यातभागवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। हास्य, रति, अरति और शोककी असंख्यातभागवृद्धि और असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार भवनवासी देवोंसे लेकर उपरिम वेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जहां पर तेतीस सागर कहा है वहां पर अपनी अपनी स्थिति कहनी चाहिए। ६३६६. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल दो समय कम एक प्रावलि है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है। असंख्यातगुणहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । सम्यक्त्व की असंख्यातभागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी स्थितिप्रमाण है। सम्यग्मिथ्यात्वकी असंख्यातभागहानिका जघन्य काल जघन्य स्थितिप्रमाण है और उत्कृष्ट काल उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण है। बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साकी असंख्यात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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