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________________ १७० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ अवत्त० संखे०गुणा । भुज० संखे०गुणा । अप्प० असंखे०गुणा । इत्थि०-हस्स-रईणं सव्वत्थोवा अवहि० । भुज० असंखे०गुणा । अप्प० संखे० गुणा । णस०-अरइसोगाणं सब्वत्योवा अवहि० । अप्प० असंखे०गुणा । भुज० संखे गुणा । ६३३८. पंचिं०तिरि०अपज० मिच्छ०-सोलसक०-भय-दुगुंछाणमोघो । णवरि अणंताणु०चउक्क० अवत्त० णत्थि । सम्म०-सम्मामि० णत्थि अप्पाबहुअं, एयपदत्तादो। इत्थिवेद०-पुरिस-हस्स-रदीणं सव्वत्थोवा भुज० । अप्प० संखेज्जगुणा । णवूस-अरदिसोगाणं सव्वत्थोवा अप्प० । भुज० संखे०गुणा । एवं मणुसअपज्ज। ___३३६. मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु मिच्छ०-बारसक०-भय-दुगुंडा० सव्वत्थोवा अवहि० । अप्प० संखे०गुणा। भुज० संखे०गुणा। अणंताणु०चउक्क० सव्वत्थोवा अवत्त० । अवडि० संखे०गुणा। सेसं मिच्छत्तभंगो। सम्म०-सम्मामि० सव्वत्थोवा अवहि० । अवत्त संखे०गुणा । भुज० संखेगुणा। अप्प० संखे.गुणा । पुरिस० सव्वत्थोवा अवहि० । भुज० संखे गुणा। अप्प० संखे०गुणा। सेसमोघो। णवरि देवोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मनुष्योंमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके अवस्थितविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवक्तव्यविभक्तिबाले जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगारविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतरविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। स्त्रीवेद, हास्य और रतिके अवस्थितविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे भुजगारविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतरविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। नपुंसकवेद, अरति और शोकके अवस्थितविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अल्पतरविभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगारविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। ६३३८. पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साका भङ्ग पोषके समान है। इतनी विशेषता है कि अनन्तानुबन्धीचतुष्कका अवक्तव्यपद नहीं है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि यहाँ इनका एक पद है। स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य और रतिके भुजगारविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अल्पतरविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। नपुंसकवेद, अरति और शोकके अल्पतरविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे भुजगारविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। इसीप्रकार मनुष्य अपर्याप्तकोंमें जानना चाहिए। ६३३६. मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय, भय और जुगुप्साके अवस्थितविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अल्पतरविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगारविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। अनन्तानुबन्धीचतुष्कके अवक्तव्यविभविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवस्थितविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। शेष भङ्ग मिथ्यात्वके समान है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके अवस्थितविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे अवक्तव्यविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे भुजगारविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतरविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। पुरुषवेदके अवस्थितविभक्तिवाले जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे भुजगारविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अल्पतरविभक्तिवाले जीव संख्यातगुणे हैं। शेष भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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