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________________ १३२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ $ २७६. बंधगदाए तहवहाणादो। 8 अरवीए जहएणपदेससंतकम विसेसाहियं । $२८०. पयडिविसेसादो। * णवुसयवेदे जहएणपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । २८१. कुदो ? एइंदियअरदि-सोगबंधगद्धादो तत्थतणणqसयवेदबंधगदाए विसेसाहियत्तादो। केत्तियमेत्तो बंधगद्धाविसेसो ? हस्स-रदिबंधगद्धाए संखेज्जभागमेत्तो । तदणुसारेण च दव्वविसेसो परूवेयबो। * दुगु छाए जहएणपद ससंतकम्मं विसेसाहियं । २८२. धुवबंधित्तादो। ॐ भए जहएणपदेससंतकम्म विसेसाहियं । २८३. पयडिविसेसेण तहावट्ठाणादो। 8 माणसंजलणे जहएणपदेससंतकम्म विसेसाहियं । 8 २८४. मोहणीयदसमभागं पेक्खियूग तदहमभागस्स विसेसाहियत्ते संदेहाभावादो। * कोहस जलणे जहएणपदेससंतकम्म विसेसाहियं । * मायास जलणे जहएणपदेससंतकम्मं विसेसाहियं । ६२७६. क्योंकि बन्धक काल उस प्रकारसे अवस्थित है। * उससे अरतिमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। ६२८०. क्योंकि यह प्रकृतिविशेष है। * उससे नपुसकवेदमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। $ २८१. क्योंकि एकेन्द्रियोंमें अरति और शोकके बन्धक कालसे वहाँ पर नपुंसकवेदका बन्धक काल विशेष अधिक है। बन्धककाल विशेषका प्रमाण कितना है ? हास्य और रतिके बन्धककालके संख्यातवें भागप्रमाण है। और उसीके अनुसार द्रव्यविशेषका कथन करना चाहिए । * उससे जुगुप्सामें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है । ६ २८२. क्योंकि यह ध्रुवबन्धिनी प्रकृति है। उससे भयमें जघन्य प्रदेशसत्कम विशेष अधिक है। $ २८३. क्योंकि प्रकृतिविशेष होनेसे उसका उस रूपसे अवस्थान है । * उससे मानसंज्वलनमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है। ६२८४. क्योंकि मोहनीयके दसम भागको देखते हुए उसका आठवाँ भाग विशेष अधिक होता है इसमें सन्देह नहीं है। * उससे क्रोध संज्वलनमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है । * उससे माया संज्वलनमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म विशेष अधिक है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001413
Book TitleKasaypahudam Part 07
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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