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________________ ८४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ सम्मामिच्छत्तसरूवेण परिणदपदेसपिंडादो विदियसमए सम्मत्त सरूवेण संकंतपदेसग्गमसंखे०गुणं । तम्मि चेव समए सम्मामिच्छत्ते संकंतपदेसग्गमसंखे०गुणं । एवं सव्विस्से गुणसंकमद्धाए सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं पूरणकमो वत्तव्यो । प्रदेशसमूह उससे असंख्यातगुणा है। प्रथम समयमें सम्यग्मिथ्यात्वरूपसे परिणमन करनेवाले प्रदेशसमूहसे दूसरे समयमें सम्यक्त्वरूपसे संक्रमण करनेवाला प्रदेशसमूह असंख्यातगुणा है । उससे उसी दूसरे समयमें सम्यग्मिथ्यात्वमें संक्रान्त होनेवाला प्रदेशसमूह असंख्यातगुणा है। इसी प्रकार गुणसंक्रमके सब कालमें सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके पूरनेका क्रम कहना चाहिये। विशेषार्थ-सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिका उत्कृष्ट संचय उस जीवके बतलाया है जो मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसंचय करके सातवें नरकसे निकलकर तिर्यश्चोंके दो तीन भव धारण करके मनुष्योंमें जन्म लेकर गर्भसे लेकर आठ वर्षकी उम्रमें सम्यक्त्वको प्राप्त करके फिर दर्शनमोहका क्षपण करता हुआ जब मिथ्यात्वकी अन्तिम फालिको सम्यग्मिथ्यात्वमें संक्रान्त करता है तब उसके सम्यग्मिध्यात्वका उत्कृष्ट संचय होता है। जब जीव उपशम सम्यक्त्वके अभिमुख होता है तो उसके अधःकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण नामके तीन करण अर्थात् परिणाम विशेष होते हैं। इनमेंसे अधःकरणके होने पर तो जीवके प्रतिसमय अनन्तगुणीअनन्तगुणी विशुद्धिमात्र होती है, जिससे अप्रशस्त प्रकृतियोंके अनुभागबन्धमें प्रतिसमय हीनता होती जाती है और प्रशस्त प्रकृतियोंके अनुभागबन्धमें प्रतिसमय वृद्धि होती जाती है। किन्तु अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणमें चार कार्य होते हैं-स्थितिखण्डन, अनुभागखण्डन, गुणणि और गुणसंक्रम। पहले बँधे हुए सत्तामें स्थित कर्मोकी स्थितिके घटानेको स्थितिखण्डन कहते हैं। पहले बँधे हुए सत्तामें स्थित अप्रशस्त कोंके अनुभागके घटानेको अनुभागखण्डन कहते हैं। पहले बँधे हुए सत्तामें स्थित कोका जो द्रव्य गुणश्रोणिके कालमें प्रतिसमय असंख्यातगुणा असंख्यातगुणा स्थापित किया जाता है उसे गुणणि कहते हैं। तथा प्रतिसमय उत्तरोत्तर गुणितक्रमसे विवक्षित प्रकृतिके परमाणुओंका अन्य प्रकृतिरूप होना गुणसंक्रम कहाता है। गुणश्रेणिका विधान इस प्रकार जानना-विवक्षित कर्मके सर्व निषेकसम्बन्धी सब परमाणुओंमें अपकर्षण भागहारका भाग देनेसे जो परमाणु लब्धरूपसे आये उन्हें अपकृष्ट द्रव्य कहते हैं। उस अपकृष्ट द्रव्यमेंसे कुछ परमाणु तो उदयवाली प्रकृतिकी उदयावलीमें मिलाता है, कुछ परमाणु गुणश्रेणिआयाममें मिलाता है और बाकी बचे परमाणुओंको ऊपरको स्थितिमें मिलाता है। वर्तमान समयसे लेकर आवली मात्र काल सम्बन्धी निषेकोंको उदयावली कहते हैं। उस उदयावलीमें जो द्रव्य मिलाया जाता है वह सके प्रत्येक निषेकमें एक एक चय घटता हआ होता है। उस उदयावलीके निषेकोंसे ऊपरके अन्तर्मुहूर्त समय सम्बन्धी जो निषेक हैं उनको गुणश्रेणि आयम कहते हैं। उसमें जो द्रव्य दिया जाता है वह प्रत्येक निकमें उत्तरोत्तर असंख्यातगुणा असंख्यातगणा दिया जाता है। गणश्रेणिआयामसे ऊपरके सब निषेकोंको ऊपरकी स्थिति कहते हैं। उस ऊपरकी स्थितिके अन्तके जिन आवळीमात्र निषकोंमें द्रव्य नहीं मिलाया जाता उनको अतिस्थापनावली कहते हैं। बाकीके निषकोंमें जो द्रव्य मिलाया जाता है वह प्रत्येक निषेकमें उत्तरोत्तर घटता हुआ मिलाया जाता है। जैसे-विवक्षित कर्मकी स्थिति ४८ समय है। उसके निषेक भी ४८ हैं। उन निषेकोंके सब परमाणु २५ हजार हैं। उनमें अपकर्षण भागहारका कल्पित प्रमाण ५ से भाग देनेसे पाँच हजार लब्ध आया, अतः २५हजारमेंसे ५ हजार परमाणु लेकर उनमें से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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