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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहतीए सामित्तं सागरोवमाणि दोभवग्गहणाणि तत्थ अपच्छिमे तेतीसं सागरोषमिए णेरइयभवग्गहणे चरिमसमयणेरइयस्स तस्स मिच्छत्तस्स उक्कल्सयं पदेससंतकम्म।
६९४. बादरपुढविजीवेसु कम्मट्टिदिमच्छिदाउओ त्ति उत्ते तसहिदीए ऊणकम्मढिदिमच्छिदो त्ति घेत्तव्वं । तसहिदियणकम्मट्टिदीए कुदो कम्मट्टिदिववएसो ? दवट्ठियणयणिबंधणउवयारादो । बादरपुढविजीवेसु चेव किमहं हिंडाविदो ? अइबहुअजोगेण बहुपदेसगहणहं । सेसेइंदियाणं जोगेहितो बादरपुढविजीवजोगो असंखे०गुणो त्ति कुदो णव्वदे ? एदम्हादो चेव सुत्तादो । तत्थ तिव्वसंकिलेसेण बहुदव्युक्कड्डणहमिदि किमटुं ण वुच्चदे ? तदटुं पि होदु, विरोहाभावादो । बादरणिद्देसो सुहुमपडिसेहफलो । किमटुं तप्पडिसेहो कीरदे ? ण, बादरजोगादो सुहुमजोगेण असंखेगुणहीणेण पदेसग्गहणे संते गुणिदकमंसियत्ताणुववत्तीदो। किं च सेसेइंदियआउआदो बादरपुढविजीवाणनरकसम्बन्धी तेतीस सागरकी स्थितिको लेकर दो भव ग्रहण किये । उन दो भवोंमेंसे जब वह जीव तेतीस सागरकी स्थितिवाले नरकसम्बन्धी अन्तिम भवको ग्रहण करके अन्तिम समयवर्ती नारकी होता है तब उसकेमिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होता है।
६ ९४. 'बादर पृथियोकायिक जीवोंमें कर्मस्थिति पर्यन्त रहा' ऐसा कहनेसे त्रसोंकी कायस्थितिसे हीन कमस्थिति काल तक रहा ऐसा ग्रहण करना चाहिए।
शंका-त्रसकायकी स्थितिसे हीन कर्मस्थितिको 'कर्मस्थिति' क्यों कहा है ? समाधान—द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षा उपचारसे कर्मस्थिति कहा है। शंका—बादर पृथिवीकायिक जीवोंमें ही क्यों भ्रमण कराया है ?
समाधान—अत्यन्त बहुत योगके द्वारा बहुत प्रदेशोंका ग्रहण करनेके लिये बादर पृथिवीकायिक जीवोंमें भ्रमण कराया है।
शंका-शेष एकेन्द्रिय जीवोंके योगसे बादर पृथिवीकायिक जीवोंका योग असंख्यातगुणा होता है, यह किस प्रमाणसे जाना ?
समाधान—इसी सूत्रसे जाना । अर्थात् यदि ऐसा न होता तो उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मके ग्रहण करनेके लिये शेष एकेन्द्रियोंको छोड़कर बादर पृथिवीकायिकोंमें ही भ्रमण न कराते । इसीसे स्पष्ट है कि उनसे इनका योग असंख्यातगुणा होता है।
शंका-बादर पृथिवीकायिकोंमें तीव्र संक्लेशके द्वारा बहुत द्रव्यका उत्कर्षण करानेके लिये उनमें भ्रमण कराया है ऐसा क्यों नहीं कहते हो ?
समाधान—इसके लिये भी होओ, क्योंकि इसमें कोई विरोध नहीं है। सूक्ष्मकायका प्रतिषेध करनेके लिए बादरपदका निर्देश किया है। शं -सूक्ष्मका निषेध किसलिए किया जाता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि बादरकायिक जीवोंके योगसे सूक्ष्मकायिक जीवोंका योग असंख्यातगुणा हीन होता है, अतः उसके द्वारा प्रदेशोंका ग्रहण होने पर जीव गुणितकर्माशवाला नहीं हो सकता ।
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