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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ ६८७. सव्वपदेसविहत्ति-णोसव्वपदेसविहत्तियाणुगमेण दुविहो णि०-ओघेण आदेसे० । तत्थ ओघेण मोह० अट्ठावीसपयडीणं सव्वपदेसग्गं' सव्वविहत्ती । तदूर्ण णोसव्वविहत्ती। एवं णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति । ८८. उकस्साणुक्कस्सपदेसवि० दुविहो णि०-ओघेण आदेसे० । ओघेण मोह० अहावीसं पयडीणं सव्वुकस्सपदेसग्गं उक्कस्सविहत्ती। तदूणमणुक्कस्सविहत्ती । एवं णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति । ६ ८९. जहण्णाजहणाणु० दुविहो णि०-ओघेण आदेसे०। ओघेण मोह० अट्ठावीसं पयडीणं सव्वजहण्णपदेसग्गं जहण्णविहत्ती। तदुवरि अजहण्णवि० । एवं णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति । ९०. सादिय-अणादिय-धुव-अद्भुवाणु० दुविहो णि०-ओघेण आदेसे 1 मिच्छत्तअट्ठक०-अहणोक० उक्क० अणुक० ज० किं सादि० ४ १ सादि-अद्धवं । अज० किं सादि० ४ ? अणादि० धुवमद्धवं वा । पुरिस०-चदुसंज० उक० जह० कि० सा०२४ सादि-अद्ध्वं । अज० किं० सादि० ४ १ अणादि० धुवमद्धवं वा । अणुक्क० किं सादि० ६८७. सर्वप्रदेशविभक्ति और नोसर्वप्रदेशविभक्ति अनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । उनमेंसे ओघसे मोहनीयकी अट्ठाईस प्रकृतियोंके सब प्रदेशसमूहक सर्वविभक्ति कहते है और इससे कमको नोसर्वविभक्ति कहते हैं। इस प्रकार अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये। ६८८. उत्कृष्टानुत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति अनुगमसे निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी अट्ठाईस प्रकृतियोंके सबसे उत्कृष्ट प्रदेड और उससे कमको अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति कहते हैं। इस प्रकार अनाहारीपर्यन्त ले जाना चाहिये। ६८९. जघन्य-अजघन्य अनुगमसे निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी अट्ठाईस प्रकृतियोंके सबसे जघन्य प्रदेशसमूहको जघन्यविभक्ति कहते हैं और उससे अधिक प्रदेशसमूहको अजघन्य प्रदेशविभक्ति कहते हैं । इस प्रकार अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये। ९०. सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुवानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मिथ्यात्व, आठ कषाय और आठ नोकषायोंकी उत्कृष्ट अनुत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशविभक्ति क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है अथवा अध्रुव है ? सादि और अध्रुव है। अजघन्य प्रदेशविभक्ति क्या सादि है, अनादि है, ध्रव है अथवा अध्रव है ? अनादि, ध्रुव और अध्रव है । पुरुषवेद और चारों संज्वलन कषायोंकी उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशविभक्ति क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है अथवा अध्रव है ? सादि और अध्रुव है। अजघन्य प्रदेशविभक्ति क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है अथवा अध्रुव है ? अनादि, ध्रुव और अध्रुव है। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है अथवा अध्रुव है ? सादि, अनादि, ध्रुव और ओपन समहको उत्कृ कहतह १. श्रा०प्रती 'सवजहण्णपदेसग्गं' इति पाठः । २. ता.आ. प्रत्योः 'उक्क० किं० सा०' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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