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________________ ६६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ मेत्तेण ? तिभागमेत्तेण । पुरिसवेदभागो विसेसाहिओ १२ । के०मेत्तेण ? दुभागमेत्तेण । मायासंजल भागो विसे० पयडि विसेसमेत्तेण । ६८१. पुणो पुव्वमवणिदअणंतिमभागमेत्तसव्वघादिदव्वं पलिदो० असंखे०भागेण खंडेयूण तत्थेयखंडं पुध दृविय सेससव्वखंडाणि घेत्तणावलि० असंखे भागेण खंडेयूण तत्थेयखंड पि पुध दृविय सेससव्वदव्वमट्ठसरिसपुंजे कादूण पुणो आवलि० असंखे भागमवट्ठिदविरलणं कादूण तदो आवलि० असंखे०भागपडिभागेण पुव्वमवणिदेयखंडमेदिस्से विरलणाए समपविभागेण दादूण तत्थेयखंडं मोत्तूण सेससव्वरूवधरिदखंडाणि घेत्तण पढमपुंजम्मि पक्खित्ते पञ्चक्खाणलोभभागो होदि । एवं पुणो पुणो पुव्वविहाणं जाणियण कीरमाणे माया-कोध-माण-अपञ्चक्खाणलोभ-माया-कोध-माणभागा जहाकममुप्पजंति । ६८२. पुणो पुव्वमवणिदअसंखे०भागमेत्तदव्वंप लिदोवमासंखे०भागपडिभागियं घेत्तूण तस्स पलिदो० असंखे भागमेत्तखंडाणि कादूण तत्थेयखंडपरिहारेण सेससव्वखंडेसु गहिदेसु मिच्छत्तभागो होदि । पुणो सेसमसंखे भागं घेत्तूण तत्थ पलिदोवमस्स असंखे०भागेण खंडेयणेयखंडं पुध दृविय सेससव्वखंडाणि घेत्तूणावलि. असंखे० भाग विशेष अधिक है। कितना अधिक है ? दो भाग मात्र अधिक है। अर्थात् यदि मान संज्वलनका द्रव्य ८ है तो पुरुषवेदुका द्रव्य १२ होता है । माया संज्वलनका भाग विशेष अधिक है। विशेषका प्रमाण प्रकृतिमात्र है। ६८१. देशघाती द्रव्यका भागाभाग कहकर अब सर्वघाती द्रव्यका भागाभाग कहते हैं। पहले सब द्रव्यमें अनन्तका भाग देकर जो अनन्तवें भागप्रमाण सर्वघाती द्रव्य अलग स्थापित किया था उसको पल्यके असंख्यातवें भागसे भाजित करके उसमेंसे एक भागको पृथक् स्थापित करो। शेष सब भागोंको लेकर आवलिके असंख्यातवें भागसे भाजित करके उसमेंसे भी एक भागको पृथक् स्थापित करो। शेष सब द्रव्यके आठ समान भाग करो। फिर आवलिके असंख्यातवें भागको अवस्थित विरलन करके पहले आवलिके असंख्यातवें भागसे भाग देकर जो एक भाग घटाकर अलग स्थापित किया था उसके समान विभाग करके इस विरलित राशि पर दे दो। उन भागोंमेंसे एक भागको छोड़कर शेष सब विरलितरूपों पर दिये गये भागोंको एकत्र करके आठ भागोंमेंसे प्रथम भोगमें मिलाने पर प्रत्याख्यान लोभका भाग होता है। इस प्रकार पुनः पुनः पहले कहे गये विधानको जानकर उसके अनुसार करने पर अर्थात् बाकी बचे एक एक भागके इसी प्रकार विरलित राशिप्रमाण खण्ड कर करके और विरलित राशिपर उन्हें दे देकर तथा एक भागको छोड़ शेष सब भागोंको एकत्र कर करके बाकी बचे सात समान भागोंमें क्रम क्रमसे मिलाने पर प्रत्याख्यानावरण माया, क्रोध, मान और अप्रत्याख्यानावरण लोभ, माया, क्रोध तथा मानके भाग क्रमशः उत्पन्न होते हैं। ६८२. पुनः पहले पल्योपमके असंख्यातवें भागसे भाग देकर घटाये हुए असंख्यातवें भागमात्र द्रव्यको लेकर उसके पल्यके असंख्यातवें भागमात्र खण्ड करके उनमेंसे एक खण्डको छोड़कर शेष सब खण्डोंके मिलाने पर मिथ्यात्वका भाग होता है। पनः बाकी बचे असंख्यातवें भागको लेकर उसके पल्यके असंख्यातवें भाग खण्ड करके उनमेंसे एक खण्डको पृथक् स्थापित करके शेष सब खण्डोंको लेकर उनमें आवलिके असंख्यातवें भागसे भाग दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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