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________________ गा० २१ उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं ३८९ कम्मंसाणं जहणणयं पदेससंतकम्मं । . ४४८. आदेसेणणेर० मिच्छ० जह० पदेस०वि० कस्स । जो खविदकम्मंसिओ विवरीयं गंतूण दीहाउढिदिएसु उववण्णो । सव्वलहुं सव्वाहि पजत्तीहि पजत्तयदो सव्वविसुद्धो सम्मत्तं पडिवण्णो । पुणो अणंताणुबंधिं विसंजोइत्ता दीहाउडिदि सम्मत्तमणुपालिय से काले मिच्छत्तं गाहदि ति तस्स जहण्णपदेसविहित्ती । एवमित्थिणउंसयवेदाणं । णवरि मिच्छत्तं गंतूण अंतोमुहुत्ते गदे अप्पप्पणो पडिवक्खबंधगद्धा. चरिमसमए जहण्णसंतकम्म । सम्मत्त-सम्मामि० जह० पदे०वि० कस्स ? अण्ण० जो खविदकम्मंसिओ मिच्छत्तं गदो। दीहाए उव्वेल्लणद्धाए उव्वेल्लमाणओ णेरइएसु उववण्णो तस्स एया हिंदी दुसमयकाल ट्ठिदिसेसे जहण्णयं संतकम्म। अणंताणु० ज० कस्स ? अण्ण० जो खविदकम्मंसिओ विवरीयं गतूण दीहाउटिदिएसु रइएसुववण्णो। पुणो अंतोमुहुत्तेण सम्मत्तं पडिवज्जिय अणंताणुबंधि० विसंजोइय पुणो संजुत्तो होदण सव्वलहुं पुणो वि सम्मत्तं पडिवण्णो। तत्थ दीहं भवहिदि सम्मत्तमणुपालेदूण थोवावसेसे जीविदव्वए ति अणंताणुबंधि० विसंजोइदुं आढत्तो । अपच्छिमहिदिखंडयं संच्छुहमाणं सच्छद्धं । उदयावलियाए गलमाणं गलिदं । जाधे एया हिदी दुसमयकालडिदिसेसंतस्स जहण्णयं पदेससंतकम्म। बारसकसाय-भय-दुगुच्छाणं स्थितिकाण्डकके अन्तिम समयमें अनिर्लेपित रहने पर छह नोकषायोंका जघन्य प्रदेशसफर्म होता है। ६४४८. आदेरासे नारकियों में मिथ्यात्यकी जघन्य प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? जो क्षपितकर्माशिक जीव विपरीत जाकर दीर्घ आयुवाले नारकियोंमें उत्पन्न हुआ। अतिशीघ्र सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ। सर्वविशुद्ध होकर सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। पुनः अनन्तानुबन्धीको विसंयोजनाकर दीर्घ आयुस्थिति काल तक सम्यक्त्वका पालन कर अनन्तर समयमें मिध्यात्वको प्राप्त होगा उसके मिथ्यात्त्रकी जघन्य प्रदेशविभक्ति होती है। इसी प्रकार स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका जघन्य स्वामित्व जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि मिथ्योत्वमें जाकर अन्तर्मुहूर्त जाने पर अपने अपने प्रतिपक्ष बन्धक कालके अन्तिम समयमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म होता है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशसत्कर्म किसके होता है ? जो अन्यतर क्षपितकर्माशिक जीव मिश्र त्वमें गया । दीर्घ उद्वेलनाके द्वारा उद्वेलना करता हुआ नारकियोंमें उत्पन्न हुआ उसके दो समय कालप्रमाण स्थितिवाली एक स्थितिके शेष रहने पर जघन्य प्रदेशसत्कर्म होता है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जघन्य प्रदेशसत्कर्म किसके होता है ? जो अन्यतर क्षपितकौशिक जीव विपरीत जाकर दीर्घ आयुस्थितिवाले नारकियोंमें उत्पन्न हुआ। पुनः अन्तमुहूतेके द्वारा सम्यक्त्वको प्राप्त कर अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना कर तथा पुनः संयुक्त होकर अतिशीघ्र फिर भी सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। वहां दीर्घ भवस्थिति तक सम्यक्त्वका पालनकर स्तोक जीवितव्यके शेष रहने पर अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना करनेके लिये उद्यत हुआ। अन्तिम स्थितिकाण्डकका संक्रमण द्वारा संक्रमण किया। उदयावलिका क्रमसे गलन हुआ। जब दो समय कालप्रमाण स्थिति शेष रही तब उसके अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जघन्य प्रदेशसत्कर्म होता है। बारह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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