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________________ ૨૮૮ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ कस्स ? अण्ण खविदकम्मंसिओ अभवसिद्धियपाओग्गेण जहण्णेण संतकम्मेण तसेसु आगदो। सम्मत्तं संजमं संजमासंजमं च बहुसो लद्धण चत्तारिवारं कसाए उवसामेदण बेच्छाहीओ सम्मत्तमणुपालेदूण खवेदुमाढत्तो । णउंसयवेदस्स अपच्छिमं विदिखंडयं संच्छुहमाणं संच्छुद्धं । उदओ णवरि सेसो। तस्स चरिमसमयणउंसयस्स जहण्णयं पदेससंतकम्मं । एवं चेव इत्थिवेदस्स । पुरिसवेद० जह० पदेस० चरिमसमयपुरिसेण घोलमाणजहण्णजोगट्ठाणे वट्टमाणेण जं बद्धं चरिमसमयअसंकामिदं तस्स जहण्णयं पदेससंतकम्मं । कोधसंज. जह० पदेसवि० कस्स ? चरिमसमयकोधवेदगे खवगेण जहण्णण जोगहाणेण बद्धं तं जं वेलं चरिमसमयअणिल्लेविदं तस्स जहण्णवं पदेससंतकम्मं । एवं माण-मायाणं । लोभसंज० जह० कस्स ? अण्ण. अभवसिद्धियपाओग्गेण जहण्णएण कम्मेण तसकायं गदो। तम्मि सम्मत्तं संजमं संजमासंजमंच बहुसो लहिदाउओ। सकि पि कसाए ण उवसामिदाओ। कसायक्खवणाए अब्भुडिदो तस्स अधापवत्तकरणचरिमसमए जहण्णयं लोभसंजलणस्स संतकम्मं । छण्णोकसायाणं जह० पदे०वि० कस्स ? अण्ण. खविदकम्मंसिओ तसेसु आगदो। तत्थ संजमासंजमं संजमं सम्मत्तं च बहुसो लद्धाउओ। चत्तारिवारे कसाए उवसामेदण कसायक्खवणाए अन्भुट्टिदो तस्स चरिमे द्विदिखंडए चरिमसमयअगिल्लेविदे छण्णं प्रदेशसत्कर्म होता है। नपुंसकवेदका जघन्य प्रदेशसत्कर्म किसके होता है ? जो अन्यतर क्षपितकौशिक जीव अभव्योंके योग्य जघन्य प्रदेशसत्कर्मके साथ त्रसोंमें आया । सम्यक्त्व, संयम और संयमासंयमको बहुत बार प्राप्त कर तथा चार बार कषायोंको उपशमाकर दो छयासठ सागर काल तक सम्यक्त्वको पाल कर क्षय करनेके लिए उद्यत हुआ । अन्तिम स्थितिकाण्डकका संक्रमण करते हुए संक्रमण किया। जब उदय शेष रहा तब उसके चरम समयमें नपुंसकवेदका जघन्य प्रदेशसत्कर्म होता है। इसी प्रकार स्त्रीवेदके जघन्य प्रदेशसत्कर्मका स्वामी जानना चाहिए । पुरुषवेदका जघन्य प्रदेशसत्कर्म किसके होता है ? जघन्य योगस्थानमें न चरम समयवर्ती परुषने जो बन्ध किया तथा चरम समयमें संक्रमित नहीं किया उसके पुरुषवेदका जघन्य प्रदेशसत्कर्म होता है । क्रोधसंज्वलनका जघन्य प्रदेशसत्कर्म किसके होता है ? चरम समयमें क्रोधका वेदन करनेवाले क्षपकने जघन्य योगस्थानका अवलम्बन लेकर बन्ध किया। फिर उसका संक्रमण करते हुए अन्तिम समयमें जब अनिर्लेपित रहता है तब उसके क्रोधसंज्वलनका जघन्य प्रदेशसत्कर्म होता है। इसी प्रकार मानसंज्वला और मायासंज्वलनका जघन्य स्वामी जानना चाहिए। लोभसंज्वलनका जघन्य प्रदेशसत्कर्म किसके होता है ? जो अन्यतर जीव अभव्योंके योग्य जघन्य प्रदेशसत्कर्मके साथ त्रसकायको प्राप्त हुआ। वहाँ पर सम्यक्त्व, संयम और संयमासंयमको बहुत बार प्राप्त किया। एक बार भी कषायोंका उपशम नहीं किया। कषायोंके क्षयके लिए उद्यत हुआ उसके अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयमे लोभसंज्वलनका जघन्य प्रदेशसत्कर्म होता है । छह नोकषायोंका जघन्य प्रदेशसत्कर्म किसके होता है ? जो अन्यतर क्षपितकर्माशिक जीव त्रसोंमें आया। वहां पर संयमासंयम, संयम और सम्यक्त्वको बहुत बार प्राप्त हुआ। चार बार कषायोंको उपशमा कर कषायों का क्षय करनेके लिए उद्यत हुआ उसके अन्तिम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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