SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ तप्पाओग्गअसंखेजगुणजोगेण बंधिय अधियारतिचरिमसमए विदखवगहाणं पुग्विल्लट्ठाणादो विसेसाहियं, चडिदद्धाणमेत्तदुचरिम-तिचरिमफालीणमहियत्तवलंभादो। संपहि अधापवत्तभागहारेणोपट्टिदं दुगुणंचडिदद्धाणं सादिरेयमत्तंदोफालिक्खवगमोदारिय पुणो तिण्णिफालिक्खवगे पक्खेवुत्तरजोग णोदे तिचरिमफालिविसेसट्ठाणं पुनरुत्तं होदि, पुव्वं णियत्ताविदट्ठाणस्सेव समुप्पण्णत्तादो । संपहि इममेत्थेव ढविय पुणो एगफालिक्खवगपक्खेवुत्तरजोगं णीदे हाणमपुणरुतं होदि, एगचरिमफालिट्ठाणं दुचरिमफालिहाणाणि च बोलिय समुप्पण्णत्तादो। एवं जाणिदूण णेदव्वं जावुक्कस्सजोगादो हेट्ठा तिभागजोगं पत्तो त्ति । ___६४०४. पुणो एत्थेगो अधिक तत्थो उच्चदे । तं जहा-एदाणि तिचरिमफालिविसेसहाणाणि समुप्पजमाणाणि एगफालिसामिणो उक्कस्सट्ठाणादो हेद्विममंतरं कत्थ द्विदस्स पत्ताणि त्ति जो सवेदतिचरिमसमए पक्खेउत्तरतिभागजोगेण दुचरिमसमए उक्कस्सजोगस्स तिभागजोगेण तिचरिमसमए रूऊणधापवत्तभागहारेणोवट्टिदतिभागजोगपक्खेवभागहारं तिगुणमेत्तं पुणो रूऊणधापवत्तभागहारवग्गेणोवट्टिदतिभागजोगपश्खेवभागहारमेत्तं चदुरूवाहियं हेट्ठा ओदरिदूण द्विदजोगेण बंधिय अधियारतिचरिमसमए हिदक्खवगहाणं तत्थंतरे समुप्पजदि, छण्णं फालीणं सव्वदव्वे मेलाविदे एगफालिसामिणो चरिम-दुचरिमफालिट्ठाणागमंतरे अवहाणुवलंभादो । असंख्यातगुणे योगसे बन्ध कर अधिकृत त्रिचरम समयमें स्थित हुआ क्षपकस्थान पहलेके स्थानसे विशेष अधिक है, क्योंकि आगे गये हुए अध्वानमात्र द्विचरम और त्रिचरम फालियांकी अधिकता उपलब्ध होती है । अब अधःप्रवृत्तभागहारसे भाजित दुगुने साधिक आगे गये हुए अध्वानमात्र दो फालिक्षपकको उतार कर पुनः तीन फालिक्षपकके प्रक्षेप अधिक योगको प्राप्त कराने पर विचरम फालिविशेषरूप स्थान पुनरुक्त होता है, क्योंकि पहले प्राप्त कराया गया स्थान ही उत्पन्न हुआ है। अब इसे यहीं पर स्थापित कर पुनः एक फालिक्षपकके प्रक्षेप अधिक योगको प्राप्त कराने पर स्थान अपुनरुक्त होता है, क्योंकि एक चरम फालिस्थानको और द्विचरम फालिस्थानोंको उल्लंघन कर यह उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार जान कर उत्कृष्ट योगसे नीचे त्रिभाग योगके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए। ६४०४. पुनः यहाँ पर एक अधिकृत अर्थ का कथन करते हैं। यथा--ये विचरम फालिविशेषस्थान उत्पन्न होते हुए फालिस्वामीके उत्कृष्ट स्थानसे अधस्तन अन्तरालमें कहां पर स्थित हुए जीवके प्राप्त होते हैं-ये सवेद भागके त्रिचरम समयमें प्रक्षेप अधिक त्रिभागयोगसे, द्विचरम समयमें उत्कृष्ट योगके त्रिभाग योगसे तथा त्रिचरम समयमें एक कम अधःप्रवृत्त भागहारसे भाजित त्रिभाग योगके प्रक्षेप भागहार तिगुणामात्र पुनः एक कम अधःप्रवृत्त भागहारके वर्गसे भाजित त्रिभाग योग प्रक्षेप भागहारमात्र चार रूप अधिक नीचे उतार कर स्थित हुए योगसे बन्ध करा कर अधिकृत त्रिचरम समयमें स्थित क्षपकस्थान वहां अन्तराल में उत्पन्न होता है, क्योंकि छह फालियोंके सब द्रव्यके मिलाने पर एक फालिके स्वामीका चरम और द्विचरम फालिस्थानोंके अन्तरालमें अवस्थान उपलब्ध होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy