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________________ २४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ कुछ कम छै बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन है। प्रथम नरकमें क्षेत्रकी ही तरह लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्शन है। दूसरे नरकसे लेकर छठे नरक तक वर्तमानकालकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्शन है। तथा अतीतकालकी अपेक्षा स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और विक्रिया पदके द्वारा लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्शन है और मारणान्तिक तथा उपपादके द्वारा त्रसनालीकी अपेक्षा दूसरी पृथिवीमें कुछ कम एक बटे चौदह भागप्रमाण, तीसरीमें कुछ कम दो बटे चौदह भागप्रमाण, चौथीमें कुछ कम तीन बटे चौदह भागप्रमाण, पाँचवीमें कुछ कम चार बटे चौदह भागप्रमाण और छठींमें कुछ कम पाँच बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन है। सामान्य देवोंमें वर्तमानकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्शन है और अतीत कालकी अपेक्षा विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और विक्रियापदके द्वारा त्रसनालीका कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन है, क्योंकि तीसरी पृथिवीसे नीचे देव नहीं जा सकते । तथा मारणान्तिकपदके द्वारा त्रसनालीका कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन है, क्योंकि नीचे दो राजू और ऊपर सात राजू इस तरह कुछ कम नौ राजू क्षेत्रको मारणान्तिकसमुद्धात करनेवाले देव स्पृष्ट करते हैं। भवनवासी आदि सब देवोंमें वर्तमानकालकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पर्शन है और अतीतकालकी अपेक्षा भवनत्रिकमें विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और विक्रियापदके द्वारा प्रसनालीका कुछ कम साढ़े तीन बटे चौदह भागप्रमाण अथवा कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन है, क्योंकि मन्दरतलसे नीचे दो राजू और ऊपर सौधर्म कल्पके विमानके ध्वजदण्ड तक डेढ़ राजू इस तरह कुछ कम साढ़े तीन राजमें तो स्वयं ही विहार कर सकते हैं और ऊपरके देवोंके ले जानेसे कुछ कम आठ राजू तक विहार कर सकते हैं। तथा मारणान्तिक समुद्धातके द्वारा त्रसनालीका कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन है, क्योंकि मन्दराचलसे नीचे कुछ कम दो राजू और ऊपर सात राजू इस तरह नौ राज होते हैं। उसमें तीसरी पृथिवीके नीचेका कुछ भाग छूट जाता है जहाँ देव नहीं जाते। सौधर्मसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवोंने अतीतकालमें विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और विक्रियापदके द्वारा त्रसनालीका कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है। मारणान्तिकपदके द्वारा सौधर्म-ईशान कल्पके देवोंने त्रसनालीका कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है और सानत्कुमारसे लेकर सहस्रार कल्पतकके देवोंने त्रसनालीका कछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है। उपपादपदके द्वारा सौधर्म ईशान कल्पके देवोंने बसनालीका कुछ कम डेढ़ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रस्पर्श किया है, क्योंकि सौधर्मकल्प पृथिवीतलसे डेढ़ राजू के भीतर है। तथा उपपादपदके द्वारा सानत्कुमार माहेन्द्र कल्पके देवोंने त्रसनालीका कुछ कम तीन बटे चौदह, ब्रह्म-ब्रह्मोतर कल्पवालोंने कळ कम साढ़े तीन बटे चौदह, लान्तव-कापिष्ठ कल्पवालोंने कुछ कम चार बटे चौदह, शक्र-महाशुक्रवालोंने कुछ कम साढ़े चार बटे चौदह और शतार-सहस्रार कल्पवालोंने कुछ कम च बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है। स्वस्थानस्वस्थानकी अपेक्षा सर्वत्र लोकका प्रख्यातवाँ भाग स्पर्श किया है। आनतसे लेकर अच्युत कल्प तकके देवोंने अतीतकालमें विहारवस्वस्थान, वेदना, कषाय विक्रिया और मारणान्तिकपदके द्वारा सनालीका कुछ कम छै बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्र स्पर्श किया है, क्योंकि चित्रा पृथिवीके ऊपरके तलसे नीचे इन देवोंका गमन नहीं होता ऐसी आगमग्रन्थोंकी मान्यता है। इस प्रकार सर्वत्र अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवालोंका स्पर्शन जानना चाहिये। अच्युत स्वर्गसे ऊपर अनुत्कृष्ट विभक्तिवालोंका भी स्पर्शन लोकका असंख्यातवाँ भाग ही है। तथा इन सबमें उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवालोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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