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________________ ३१९ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं उक्कस्सजोगट्ठाणं पत्तं ति । एवं वड्डाविदे छप्फालीओ उक्कस्साओ जादाओ सेढीए असंखे०भागमेत्ताणि पदेससंतकम्मट्ठाणाणि अपुणरुत्ताणि लद्धाणि भवंति । ___® एवं जोगहाणाणि दोहि आवलियाहि दुसमयूणाहि पदुप्पण्णाणि । एत्तियाणि अवेदस्त पदेससंतकम्मट्ठाणाणि सांतराणि सव्वाणि । ६३६०. संपहि चदुचरिमसवेदस्स दसप्फालिप्पहुडि एदेण कमेणोदारेदव्वं जाव चरिमसमयसवेदस्स पढमफाली दिस्सदि ति जाव एद्दरं ओदरिदि ताव अंतराणि विसरिसाणि अण्णोण्णं पेक्खिदण विसेसाहियाणि । संपहि एत्तो प्पहुडि जाव अवेदपढमसमओ ति ताव हेहा अंतराणि सरिसाणि, एगसमयपबद्धत्तणेण समाणत्तादो । अत्थदो पुण विसरिसाणि, सव्वसमयपबद्धागमेगजहण्णजोगहाणेण बंधासंभवादो । संपहि एवमोदारिदे दुसमयूणदोआवलियमेत्तसमयपबद्धा ओदिण्णा होति । दुसमगृणाहि दोआवलियाहि सव्वजोगहाणेसु गुणिदेसु जत्तियमेत्ताणि रूवाणि तत्तियमेत्ताणि पुरिसवेदसंतकम्महाणाणि होति त्ति जं भणिदं तण्ण घडदे। तं जहा-चरिमसमयसवेदस्स चरिमफालियाए घोलमाणजहण्णजोगप्पहुडि जावुकस्सजोगहाणे ति एवडियाणि पदेससंतकम्मट्ठाणाणि लद्धाणि । तिसमयणदोआवलियमेत्तसेसचरिमफालियाहि तप्पाओग्गजहण्णजोगट्ठाणप्पहुडि जावुक्कस्सजोगट्ठाणं ति तत्तियमेत्ताणि चेव पदेस. संतकम्महाणाणि लद्धाणि । संपहि चरिमसमयसवेदस्स चरिमफालियाए लद्धपदेसचाहिये। इस प्रकार बढ़ाने पर छह फालियाँ उत्कृष्ट होकर जगणिके असंख्यातवें भागप्रमाण अपुनरुक्त प्रदेशसत्कर्मस्थान प्राप्त होते हैं। * इस प्रकार दो समय कम दो आवलियोंके द्वारा योगस्थान उत्पन्न होकर अवेदी जीवके इतने सब सान्तर प्रदेशसत्कर्मस्थान होते हैं । $ ३६०. अब चतुःसमयवर्ती सवेदी जीवके दस फालियोंसे लेकर अन्तिम समयवर्ती सवेदी जीवके जितने दूर उतरकर प्रथम फालि दिखाई देती है उतने दूर तक इस क्रमसे उतारना चाहिए । इसप्रकार इतने दूर उतरने तक अन्तर विसदृश होकर एक दूसरेको देखते हुए विशेष अधिक होते हैं। अब इससे लेकर अपगतवेदी जीवके प्रथम समयके प्राप्त होने तक नीचे अन्तर समान होते हैं, क्योंकि एक समयप्रबद्धपनेको अपेक्षा उनमें समानता है। परन्तु वास्तवमें वे विसदृश होते हैं, क्योंकि सब समयप्रबद्धोंका एक जघन्य योगके द्वारा बन्ध होना असम्भव है। अब इसप्रकार उतारने पर दो समय कम दो आवलिप्रमाण समयप्रबद्ध उतरे हुए होते हैं। शंका-दो समय कम दो आवलियोंके द्वारा सब योगस्थानोंके गुणित करनेपर जितने रूप प्राप्त होते हैं उतने पुरुषवेदके सत्कर्मस्थान होते हैं ऐसा जो कहा है वह घटित नहीं होता। खुलासा इस प्रकार है-अन्तिम समयवर्ती सवेदी जीवके अन्तिम फालिके घोलमान जघन्य योगसे लेकर उत्कृष्ट योगस्थानके प्राप्त होने तक इतने प्रदेशसत्कर्मस्थान लब्ध होते हैं। तीन समय कम दो आवलिप्रमाण शेष अन्तिम फालियोंके द्वारा तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे लेकर उत्कृष्ट योगस्थानके प्राप्त होने तक उतने ही प्रदेशसत्कर्मस्थान प्राप्त होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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