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________________ ३११ गा० २२] उत्तरपवडिपदेसविहत्तीए सामित्तं ६३४९. संपहि ताओ चेव चरिम-दचरिमपमाणेण कस्सामो । तं जहाअधापवतभागहारमेत्तचरिमफालीणं जदि रूवूणअधापवत्तमेत्तचरिम-दुचरिमफालीओ लब्भंति तो सेढीए असंखे०भागमेत्तचरिमफालीणं केत्तियाओ चरिम-दचरिमफालीओ' लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए चरिम-दुचरिमफालिपमाणं लब्भदि४। ६३५०. संपहि तिसमयणावलियाए ओवट्टिदअधापवत्तभागहारं विरिलिय एगसगलपक्खेवे समखंडं कादूण दिण्णे एगसगलपक्खेषमस्सिदूण तिसमयूणावलियाए गलिददव्वं होदि । पुणो एत्थ एगरूवधरिदपमाणे घोलमाणजहण्णजोगपक्खेवभागहारभूदसेढीए असंखे भागमेत्तसगल पक्खेवेसु अवणिदे अवणिदसेसं चरिम-दुचरिम-तिचरिमफालिपमाणं होदूण चिट्ठदि । संपहि तिचरिमफालीए इच्छिञ्जमाणाए अधापवत्तं विरलिय चरिम-दुचरिम-तिचरिमफालीसु समखंडं कादूण दिण्णासु तत्थतणएगेगरुवस्स तिचरिमफालिपमाणं पावदि । संपहि एसा तिचरिमफाली सेढीए असंखेजदिभागमेत्तचरिम-दुचरिम-तिचरिमफालीसु अवणेदव्वा । उदाहरण-यदि चरमफालि १२७५४५८४ की ९-१ =८xद्विचरमफालि १५९४३२३ प्राप्त होती हैं तो ३६४१२७५४५८४ की ३६ द्विचरमफालि प्राप्त होंगी। ६३४९. अब उन्हींको अर्थात् जगणिके असंख्यातवें भागप्रमाण चरमफालियोंको चरम और द्विचरम फालियोंके प्रमाणरूपसे करते हैं। यथा-अधःप्रवृत्तभागहारप्रमाण चरम फालियोंमें यदि एक कम अधःप्रवृत्तभागहारप्रमाण चरम और द्विचरम फालियां प्राप्त होती हैं तो जगणिके असंख्यातवें भागप्रमाण चरम फालियोंमें कितनी चरम और द्विचरम फालियां प्राप्त होंगी इस प्रकार त्रैराशिक करके फलराशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाणराशिका भाग देने पर चरम और द्विचरम फालियोंका प्रमाण प्राप्त होता है ।। उदाहरण-यदि अधःप्रवृत्तभागहार ९, चरम फालियों १२७५४५८४ की एक कम अधःप्रवृत्तभागहार ९-१८ चरम और द्विचरम फालि १४३४८६०७ प्राप्त होती हैं तो जगश्रेणिके असंख्यातवें भाग प्रमाण ३६ चरमफालि १२७५४५८४ की ६४८ चरम द्विचरम फालि प्राप्त होंगी अर्थात ३२ चरम और द्विचरमफालि प्राप्त होंगी। ३५०. अब तीन समय कम एक आवलिसे भाजित अधःप्रवृत्तभागहारका विरलन करके उसपर एक सकल प्रक्षेपको समान खण्ड करके देयरूपसे देनेपर एक सकल प्रक्षेपके आश्रयसे तीन समयकम एक आवलिके भीतर गलनेवाले द्रव्यका प्रमाण प्राप्त होता है। फिर यहां विरलनके एक अंकपर प्राप्त प्रमाणको जघन्य परिणामयोगके प्रक्षेपभागहाररूप जगणिके असंख्यातवें भागप्रमाण सकल प्रक्षेपोंमेंसे घटा देने पर जो शेष रहे उतना चरम, द्विचरम और त्रिरचम फालियोंका प्रमाण प्राप्त होता है। अब त्रिचरमफालिको लाना इष्ट है अतः अधःप्रवृतभोगहारका विरलन करके और उसपर अन्तिम, द्विचरम और त्रिचरम फालियोंको समान खण्ड करके देयरूपसे देनेपर वहां प्रत्येक एकके प्रति त्रिचरम फालियोंका प्रमाण प्राप्त होता है। अब इस त्रिचरमफालिको जगणिके असंख्यातवें भागप्रमाण चरम, द्विचरम, और त्रिचरमफालियोंमेंसे घटा देना चाहिये। इस प्रकार घटाकर जो शेष रहे वह चरम और द्विचरम फालियोंका प्रमाण होता है। अब घटाकर अलग १. भा०प्रतौ 'चरिमफालीओ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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