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________________ जयधवलास हिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ ९ ३३१. संपहि पढमफालीओ पढमसेसपमाणेण कस्सामो । किं सेसं १ विदियादिकालिपमाणं । तं जहा — अधापवत्तभागहारमे तपढमफाली हिंतो जदि एगं पढमसेसपमाणं लब्भदि तो उवरिमविरलणमेत्तपढमफालीसु किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए अधापवत्तभागद्दारेण ओवट्टिदउवरिमविरलणमेत्ता पढमसेसा लब्भंति ३ । $ ३३२. संपहि विदियादिसेसं पढमफालिपमाणेण कस्सामो । तं जहाएग विदियादिसेसादो जदि रूवूण अधापवत्तभागहारमे त पढमफालीओ लब्भंति तो सेढीए असंखे० भागमेत्तविदियादिसेसेसु केत्तियाओ लभामो ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए रूवूणअधापवत्तेण गुणिदसेढीए असंखे० भागमेत्ताओ पढमफालीओ लब्भंति ४ । ९ ३३३. संपहि विदियादिसेसं सयलपक्खेवपमाणंण कस्सामो । तं जहाअधापवत्तभागहारमेत्तसे साणं जदि रूवूणअधापवत्तभागहारमेत्तसयल पक्खेवा लब्भंति तो सेढीए असंखे० भागमे तसे साणं केत्तिए सयलपक्खेवे लभामो त्ति अधापवत्तेण सेटीए ३०४ $ ३३१. अब प्रथम फालियोंको प्रथम शेषके प्रमाणसे करते हैं । शंका- शेष किसे कहते हैं ? समाधान - दूसरी आदि फालियोंके प्रमाणको शेष कहते हैं । यथा अधःप्रवृत्त भागहार प्रमाण प्रथम फालियोंके जोड़ने पर यदि एक बार प्रथम शेषका अर्थात् प्रथम फालिके साथ शेष फालियोंका प्रमाण प्राप्त होता है तो उपरिम विरलन प्रमाण प्रथम फालियों में क्या प्राप्त होगा इस प्रकार त्रैराशिक करके फल राशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाण राशिका भाग देने अधःप्रवृत्त भागहारसे भाजित उपरिम विरलनप्रमाण प्रथम शेष प्राप्त होते हैं ३ । उदाहरण - अधःप्रवृत्त भागहार ९ है । इतनी बार प्रथम फालियोंके जोड़ने पर प्रथम आदि सब फालियोंका जोड़ ४३०४६७२१ प्राप्त होता है, अतः उपरिम विरलन ३६ बार प्रथम फालियोंके जोड़नेसे ३६ में ९ का भाग देने पर लब्ध ४ बार प्रथम शेष प्राप्त होंगे । $ ३३२, अब द्वितीयादि शेषको प्रथम फालिके प्रमाणसे करते हैं । यथा एक द्वितीयादि शेषसे यदि एक कम अधःप्रवृत्त भागद्दार प्रमाण प्रथम फालियाँ प्राप्त होती हैं तो जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण द्वितीयादि शेषोंमें कितनी प्रथम फालियाँ प्राप्त होंगी इस प्रकार त्रैराशिक करके फलराशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाणराशिका भाग देने पर एक कम अधःप्रवृत्तभागद्दार से गुणित जगश्र ेणिका असंख्यातवां भाग प्राप्त हो उतनी प्रथम फालियाँ प्राप्त होती हैं ४ । उदाहरण - दूसरी फालिसे लेकर शेष सब फालियां द्वितीयादि शेष कहलाती हैं । अंकदृष्टि से इसका प्रमाण ३८२६३७५२ है । इसमें ४७८२९६९ के बराबर एक कम अधप्रवृत्तभागहार ८ प्रमाण प्रथम फालियां प्राप्त होती हैं अतः उपरिम विरलन ३६ बार प्रथम शेषों में ८×३६ = २८८ प्रथम फालियाँ प्राप्त होंगी । § ३३३. अब द्वितीयादि शेषको सकल प्रक्षेपके प्रमाणसे करते हैं । यथा - अधःप्रवृत्त भागहार प्रमाण द्वितीयादि शेषोंके यदि एक कम अधःप्रवृत्तभागहार प्रमाण सकल प्रक्षेप प्राप्त होते हैं तो जगश्र णिके असंख्यातवें भागप्रमाण शेषोंके कितने सकल प्रक्षेप प्राप्त होंगे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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