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________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं ३०३ एदेण पमाणेण उवरिमसेढीए' असंखे०भागमेत्तसयलपक्खेवेसु अवणिदे सेसं विदियादिफालिपमाणं होदि। संपहि इमाओ अवणेदूण दृविदपढमफालीओ सयलपक्खेवसंबंधिणीओ सयलपक्खेवपमाणेण कस्सामो। तं जहा-अधापवत्तभागहारमेत्तपढमफालीओ घेत्तण जदि एगो सयलपक्खेवो लन्भदि तो सेढोए असंखे०मागमेत्तपढमफालीणं केत्तिए सयलपक्खेवे लभामो त्ति अधापवत्तभागहारेण उवरिमभागहारे सेढीए असंखे०भागमेत्ते खंडिदे तत्थ एयखंडमेत्ता सयलपक्खेवा लभंति । ६३३०. संपहि पढमफालिं विदियादिसेसफालिपमाणेण कस्सामो। तं जहारूवणअधापवत्तभागहारमेत्तपढमफालीहिंतो जदि एगं विदियादिफालिपमाणं' लब्भदि तो सेढीए असंखे०भागमेत्तपढमफालीसु केत्तियं विदियादिसेसपमाणं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए रूवूणअधापवत्त भागहारेण उवरिमविरलणाए खंडिदाए तत्थ एगखंडमेत्ताओ विदियादिसेससलागाओ लभंति २। प्रमाण सकल प्रक्षेपोंमेंसे घटाकर जो शेष रहे वह दूसरी आदि फालियोंका प्रमाण होता है। अब इन फालियोंको घटाकर सकल प्रक्षेप सम्बन्धी जो प्रथम फालियाँ स्थापित हैं उन्हें सकल प्रक्षेपके प्रमाणसे करते हैं। यथा-अधःप्रवृत्तभागहारप्रमाण प्रथम फालियोंको एकत्रित करने पर यदि एक सकल प्रक्षेप प्राप्त होता है तो जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण प्रथम फालियोंको एकत्रित करने पर कितने सकल प्रक्षेप प्राप्त होंगे इस प्रकार त्रैराशिक करके अध:प्रवृत्त भागहारका आगेके भागहार श्रेणिके असंख्यातवें भागमें भाग देने पर वहां एक खण्ड प्रमाण सकल प्रक्षेप प्राप्त होते हैं ? __उदाहरण अधःप्रवृत्तभागहार ९, जगश्रेणिका असंख्यातवां भाग ३६, प्रथम फलि ४७८२९६९, ९ बार प्रथम फलि ४७८२६६९ को जोड़ने पर एक सकल प्रक्षेप ४३०४६७२१ प्रमाण संख्या प्राप्त होती है तो जगश्रेणिके असंख्यातवें भाग ३६ बार प्रथम फालि ४७८२९६९ को जोड़ने पर ४ सकलप्रक्षेप प्राप्त होंगे यह स्पष्ट ही है। ६३३०. अब प्रथम फालिको दूसरी आदि शेष फालियोंके प्रमाणसे करते हैं। यथा-एक कम अधःप्रवृत्तभागहार प्रमाण प्रथम फालियोंके जोड़ने पर यदि एक बार दूसरी फालियोंका प्रमाण प्राप्त होता है तो जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण फालियोंके जोड़ने पर कितनी दसरी आदि शेष फालियोंका प्रमाण प्राप्त होगा इस प्रकार त्रैराशिक करके फलराशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाण राशिका भाग देने पर उपरिम विरलनमें अधःप्रवृत्तभागहारका भाग देने पर वहाँ एक भागप्रमाण दुसरी आदि शेष फालियां प्राप्त होती हैं । उदाहरण-यहाँ एक कम अधःप्रवृत्तभागहार ८ है। इतनी बार प्रथम फालियोंको जोड़ने पर एक बार दूसरी आदि सब फालियोंका प्रमाण ३८२६३७५२ प्राप्त होता है अतः जगणिके असंख्यातवें भाग ३६ बार प्रथम फालियोंको जोड़नेसे ३६ में ८ का भाग देने पर लब्ध ४३ बार दूसरी आदि फालियोंका जोड़ प्राप्त होगा। १. भा०प्रतौ 'उवरि सेढीए' इति पाठः । २. प्रा०प्रतौ 'अवणिदसेस' इति पाठः । ३. ता प्रवौ 'जदि एवमेगं विदियादिफालिपमाणं' इति पाठः । १. आ०प्रतौ 'अवटिदाए मधापवत्त' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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