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गा० २२]
मूलपयडिपदेसविहत्तीए भंगविचओ २३. जहण्णए पयदं । दुविहो णि ओघेण आदेसे० । ओघेण मोह० जहण्णाजहण्ण० पदेसविहत्तीणं णत्थि अंतरं । एवं चउगईसु । एवं णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति ।
२४. पाणाजोवेहि भंगविचओ दुविहो-जहण्णओ' उक्कस्सओ चेदि । उक्कस्से पयदं । तत्थ अट्ठपदं-जे उक्कस्सपदेसविहत्तिया ते अणुक्कस्सपदेसस्स अविहत्तिया । जे अणुक्कस्सपदेसविहत्तिया ते उक्क०पदेसस्स अविहत्तिया । एदेण अट्ठपदेण दुविहो णि०-ओघेण आदेसे० । ओघेण मोह० उक्कस्सियाए पदेसविहत्तीए सिया सव्वे जीवा अविहत्तिया १ । सिया अविहत्तिया च विहत्तिओ च २। सिया अविहत्तिया च विहत्तिया च ३ । अणुकस्सस्स वि विहत्तिपुव्वा तिण्णि भंगा वत्तव्वा । एवं सव्वणेरइयसव्वतिरिक्ख मणुस्सतिय-सव्वदेवे त्ति । मणुसअपजत्ताणमुक्क० अणुक्क० अट्ठभंगा। एवं णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति । विभक्ति होती है, अतः वहाँ न उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका अन्तर होता है और न अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका अन्तर होता है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक अन्तरकाल घटित कर लेना चाहिये।
६२३. अब जघन्यसे प्रयोजन है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी जघन्य और अजघन्य प्रदेशविभक्तिका अन्तरकाल नहीं है। इसी प्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिए । इस प्रकार अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये ।
विशेषार्थ—ओघसे क्षपित काशवाले जीवके दसवें गुणस्थानके अन्तमें मोहनीयकी जघन्य प्रदेशविभक्ति होती है। उसके बाद मोहका सद्भाव नहीं रहता, अतः न जघन्यप्रदेशविभक्तिका अन्तर प्राप्त है और न अजघन्य विभक्तिका अन्तर प्राप्त होता है। आदेश से जिन गतियोंमें क्षपक सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानकी प्राप्ति सम्भव नहीं है उनमें क्षपित काशवाला जीव मोहका क्षपण न करके उसके पूर्व ही लौटकर जिस जिस गतिमें जन्म लेता है उसके प्रथम समयमें ही जघन्य प्रदेशविभक्ति होती है। अन्यथा नहीं होती, अतः आदेशसे भी दोनों विभक्तियोंका अन्तर नहीं होता। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जघन्य और अजघन्य प्रदेशविभक्तिका अन्तरकाल क्यों सम्भव नहीं है इस बातको उक्त विधिसे घटित करके जान लेना चाहिए।
२४. नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टसे प्रयोजन है। उसमें अर्थपद है-जो उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव हैं वे अनुत्कृष्ट प्रदेशोंकी अविभक्तिवाले होते हैं और जो अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीव हैं वे उत्कृष्ट प्रदेशोंकी अविभक्तिवाले होते हैं। इस अर्थपदके अनुसार निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति की अपेक्षा कदाचित् सब जीव अविभक्तिवाले होते हैं १। कदाचित् अनेक जीव अविभक्तिवाले और एक जीव विभक्तिवाला होता है २। कदाचित् अनेक जीव अविभक्तिवाले और अनेक जीव विभक्तिवाले होते हैं ३ । अनुत्कृष्टके भी विभक्तिको पूर्वमें रखकर तीन भंग होते हैं। तात्पर्य यह है अनुत्कृष्ट विभक्तिकी अपेक्षा भंग कहते समय
१. प्रा०प्रतौ 'दुविहो णि० जहण्णो ' इति पाठः ।
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