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________________ २८६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५० तहा परूवेदव्वं । एवमोदारेदव्व जाव अंतोमुहुत्तब्भहियअहवस्समेत्तमोदरिदण हिदो त्ति । ६२९७. संपहि एदं चरिमफालिदव्वं चत्तारि पुरिसे अस्सिदूण परमाणुत्तरकमेण पंचहि वड्डीहि वड्ढाव दव्व जाव गुणिदकम्मंसिएण ईसाणदेव सु णवसयव दस्स कदउक्स्सदव्वण मणुसेसुववजिय सव्वलहुओ जोणिणिक्खमणजम्मण' अंतोमुहुत्तब्भहियअहवस्साणि गमिय सम्मत्तं संजमं च जुगवं घेत्तण अणंताणुबंधिचउक विसंजोइय चारित्तमोहणीयं खव दूण णवंसयव दचरिमफालिं धरिय हिदेण सरिसं जादंति । एवं वड्डिददव्वमीसाणदेव सु संधिय पुणो परमाणुत्तरकमेण दोहि वड्डीहि चड्ढाव दव्व जाव गवसयव दस्स ओघुक्कस्सदव्व पत्तं ति । एवं ख विदकम्मंसियकालपरिहाणीए चरिमफालि पडुच्च हाणपरूवणा कदा।। २९८. संपहि गुणिदकम्मंसियमस्सिदण हाणपरूवणं कस्सामो। तं जहाखविदकम्मंसियलक्खणेणागतूण तिसु पलिदोवमेसुववन्जिय व छावडीओ भमिय अंतोमहुत्तावसेसे मिच्छत्तं गतूण पचकोडीए उववज्जिय पुणो णव॑सयव दोदएण चारित्तमोहक्खवणाए अब्भुहिय णवसयवेदचरिमफालिं धरेदण द्विदस्स णसयवेददव्वं चत्तारि पुरिसे अस्सिदूण परमाणुत्तरकमेण पंचहि वड्डीहि वड्ढाव दव्वं जाव किया उसी प्रकार प्रतिपादन करना चाहिए । इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्ष तक उतार कर स्थित हुए जीवके प्राप्त होने तक उतारना चाहिये। २९७. अब इस अन्तिम फालिके द्रव्यको चार पुरुषोंकी अपेक्षा उत्तरोत्तर एक एक परमाणुके क्रमसे पांच द्धियोंके द्वारा तब तक बढ़ाना चाहिये जब जाकर यह द्रव्य जिस गुणितकर्माशने ईशान स्वर्गके देवोंमें नपुंसकवेदके द्रव्यको उत्कृष्ट किया है फिर जो मनुष्योंमें उत्पन्न होकर अतिशीघ्र योनिसे निकलनेरूप जन्मके द्वारा अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्ष बिताकर फिर सम्यक्त्व और संयमको एक साथ ग्रहण करके फिर अनन्तानुबन्धी चारको विसंयोजना कर और चारित्रमोहनीयकी क्षपणा कर नपुंसकवेदकी अन्तिम फालिको धारण कर स्थित है उसके द्रव्यके समान हो जावे । इस प्रकार बढ़े हुए द्रव्यकी ईशानस्वगके देवोंमें संधि करे फिर उत्तरोत्तर एक एक परमाणुके क्रमसे दो वृद्धियोंके द्वारा नपुंसकवेदके ओघ उत्कृष्ट द्रव्यके प्राप्त होने तक बढ़ाता जाय । इस प्रकार क्षपितकाशके कालकी हानि द्वारा अन्तिम फालिकी अपेक्षा स्थानोंका कथन किया। ६२९८. अब गुणितकर्मा शकी अपेक्षा स्थानीका कथन करते हैं जो इस प्रकार हैक्षपितकर्मा शकी विधिसे आकर तीन पल्यकी आयुवालोंमें उत्पन्न हो अनन्तर दो छयासठ सागर काल तक भ्रमण कर अन्तर्मुहूर्त कालके शेष रहने पर मिथ्यात्वमें जाकर अनन्तर पूर्वकोटि की आयुवालोंमें उत्पन्न हो फिर नपुसकवेदके उदयसे चारित्रमोहनीयकी क्षपणाके लिए उद्यत हो जो नपुसकवेदकी अन्तिम फालिको धारण कर स्थित है उसके नपुसकवेदके उस द्रश्यको चार पुरुषोंकी अपेक्षा उत्तरोत्तर एक एक परमाणुके क्रमसे पांच वृद्धियों द्वारा ..भा प्रतौ 'जोणिणिक्कमणजम्मणेण' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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