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गां० २२ ]
तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं
पुष्वको डिकालम्मि एगगुणहाणीए वि गलणाभावादो। संपहि दिवडुगुणिदसमयपबद्धे चरमफालीए ओट्टिदे विगिदिगोवुच्छा आगच्छदि । सा वि पयडिगोवुच्छादो असंखेअगुणा, चरिमफालिआयामस्स एगगुणहाणीए असंखे० भागत्तादो । पुणो विगिदिगोबुच्छादो अपुव्वाणियद्विगुणसेढिगोवुच्छा असंखे० गुणा, चरिमफालिआयामादो गुणसेढिगोवच्छागमणणिमित्तपलिदोवमासंखेञ्ज भागमे सभागहारस्सासंखेजगुणहीतादो। एवमेदमेगं द्वाणं ।
२५३
* तदो पदेसुत्तर |
६ २५१. तदो जहण्णद्वाणादो पदेसुत्तरं हि द्वाणमत्थि त्ति संबंधो कायन्वो । जेणेदं देसामासियं तेण दुपदेसुत्तरादिसेसट्टाणाणं सूचयं ।
* पिरंतराणि द्वापाणि जाव एगडिदिविस लस्स उक्कस्सपदं । ६ २५२. पदेसुत्तरादिकमेण णिरंतराणि द्वाणाणि ताव गच्छंति जाब एडिदिविसेसस्स दव्वमुकस्सं जादं ति ।
* एदमेगफद्दयौं ।
$ २५३. एत्थ अंतराभावादो ।
* एदेण कमेण अट्टरह पि कसायाणं समयूणावलियमेताणि फयाणि उदयावलियादो ।
गोपुच्छा भाता है, क्योंकि पूर्वकोटि कालके भीतर एक गुणहानिका भी गलन नहीं होता है । अब डेढ़ गुणहानिसे गुणित एक समयप्रबद्ध में अन्तिम फालिका भाग देने पर विकृतिगोपुच्छा आती है । वह भी प्रकृतिगोपुच्छसे असंख्यातगुणी है, क्योंकि अन्तिम फालिका आयाम एक गुणहानिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । फिर विकृतिगोपुच्छासे अपूर्वकरणकी गुणश्रेणिगोपुच्छा और अनिवृत्तिकरणकी गुणश्रेणिगोपुच्छा असंख्यातगुणी है, क्योंकि गुणश्रेणिगोपुच्छा प्राप्त करनेके लिये जो पल्यका असंख्यातवां भागप्रमाण भागद्दार है वह अन्तिम फालिके आयामसे असंख्यातगुणा हीन है । इस प्रकार यह एक स्थान है ।
* जघन्य स्थानके ऊपर एक प्रदेश बढ़ाने पर दूसरा स्थान होता है ।
६ २५१. उससे अर्थात् जघन्य द्रव्यसे एक प्रदेश अधिक करने पर दूसरा स्थान होता है । इस प्रकार इस सूत्रका सम्बन्ध करना चाहिये । चूंकि यह सूत्र देशामर्षक है, इसलिये यह दो प्रदेश अधिक आदि शेष स्थानोंका सूचक है ।
इस प्रकार एक स्थितिविशेष के उत्कृष्ट पदके प्राप्त होने तक निरन्तर स्थान होते हैं ।
२५२. एक-एक प्रदेश अधिक होकर निरन्तर स्थान तब तक प्राप्त होते जाते हैं जब जाकर एक स्थितिविशेषका उष्कृष्ट द्रव्य प्राप्त होता है ।
* ये सब स्थान मिलकर एक स्पर्धक है ।
$ २५३. क्योंकि यहाँ अन्तर नहीं पाया जाता ।
* इस क्रमसे आठों ही कषायोंके उदयावलिसे लेकर एक समयकम आवलि प्रमाण स्पधक होते हैं ।
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