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________________ २५२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ कम्मं हदसमुत्पत्तियं काढूण पुणो बादरेह दियपजत्तेसुववजिय तत्थ अंतोमुहुत्तमच्छिय पुणो पुब्बकोडाउअ मणुस्सेमुववज्ञ्जिय सब्बलहुं जोणिणिकमणजम्मणेण अंतोमुहुत्तम्भहियअवस्त्राणि गमिय पुणो सम्मत्तं संजमं च जुगवं पडिवज्ञ्जिय अणंताणुबंधिं विसंजोए दूण पुणो वेदगं पडिवजिदृण दंसणमोहणीयं खविय पुणो देसूणपुब्वकोर्डि संजमगुणसेढिणिञ्जरं करिय पुणे अंतोमुहुत्तावसेसे सिज्झिदव्यए ति तिणि वि करणाणि करिय चारित्तमोहक्खवणाए अन्भुट्टिय पुणो अणियडिअडाए संखेोमु भागेसु गदेसु अट्ठकसायचरिमफालिं परसरूवेण संछुहिय पुणो दुसमयूणावलियमेत्तगोच्छाओ गालिय एगणिसेगे दुसमयकालडिदिगे सेसे अट्ठकसायाणं जहण्णपदं होदित एसो भावत्थो । $ २४९. संपहि एत्थ परूवणा पमाणमप्याबहुअमिदि तीहि अणियोगद्दारेहि संचयानुगमं कस्सामो । तं जहा – कम्मट्ठिदिआदिसमय पहुडि उक्कस्सणिल्लेवणकालमेत्ता समयबद्धा जहण्णदव्वे णत्थि । कुदो १ साहावियादो । देसूणपुब्वकोडिमेत्ता वि णत्थि, संजमद्धीए अकसायाणं बंधाभावादो । सेससमयपबद्धाणं कम्मपरमाणू अत्थि | सेसदोअणियोगद्दाराणं परूवणा जाणिय कायव्वा । $ २५०. एत्थ पयडिगोच्छापमाणानुगमं कस्सामो । तं जहा — दिवडगुणिदेगसमयपबद्धे दिवगुणहाणीए ओवट्टिदे पयडिगोबुच्छा आगच्छदि, इतसमुत्पत्ति करके फिर बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ। वहां अन्तर्मुहूर्त काल तक रहा। फिर पूर्वकोटिकी आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न होकर अतिशीघ्र योनिसे निकलनेरूप जन्म से लेकर अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्ष बिताकर फिर सम्यक्त्व और संयमको एकसाथ प्राप्त करके और अनन्तानुबन्धी चारकी विसंयोजना कर फिर वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त कर और दर्शनमोहनीयकी क्षपणा कर फिर कुछ कम पूर्वकोटि काल तक संयम गुणश्रेणिनिर्जराको करके फिर सिद्ध पदको प्राप्त करनेके लिये जब अन्तर्मुहूर्त काल शेष रह जाय तब तीनों करणों को करके चरित्रमोहनीयकी क्षपणाके लिये उद्यत हुआ । फिर अनिवृत्तिकरणके कालमें संख्यात बहुभागके व्यतीत होनेपर आठ कषायोंकी अन्तिम फालिको पर प्रकृतिरूपसे निक्षिप्त कर फिर दो समय कम एक आवलि प्रमाण गोपुच्छाओंको गलाकर दो समयकी स्थितिवाले एक निषेकके शेष रहने पर आठ कषायोंका जघन्य पद होता है यह इस सूत्रका भावार्थ है । ६ २४९. अब यहां प्ररूपणा, प्रमाण और अल्पबहुत्व इन तीन अनुयोगोंके द्वारा संचयका विचार करते हैं जो इस प्रकार है -- कर्मस्थितिके प्रथम समयसे लेकर उत्कृष्ट निर्लेपन कालप्रमाण समयप्रबद्ध जघन्य द्रव्यमें नहीं हैं क्योंकि ऐसा स्वभाव है । कुछ कम पूर्वकोटि काल प्रमाण समयप्रबद्ध भी जघन्य द्रव्यमें नहीं हैं, क्योंकि संयमकालमें आठ कषायका बन्ध नहीं होता । शेष समयप्रबद्धों के कर्मपरमाणु हैं । शेष दो अनुयोगद्वारोंका कथन जान कर करना चाहिये | ६ २५०. अब यहां प्रकृतिगोपुच्छाके प्रमाणका विचार करते हैं जो इस प्रकार हैएक समयप्रबद्धको डेढ़ गुणहानिसे गुणा करके फिर उसमें गुणहानिका भाग देने पर प्रकृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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