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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ पलिदोवमस्स असंखे भागमेत्तद्विदीओ पूरिय ओदारेदव्वं जाव सम्मत्तमुव्वेल्लिय तदेगणिसेगं दुसमयकालहि दियं पत्तं ति । पुणो तस्समयम्मि गदउव्वेल्लणदव्वे त्थिउक्कसंकमण गदसम्मत्त-सम्मामिच्छत्तवेगोवुच्छासु च एदस्सुवरि वड्डाविदासु एदेण दवेण सम्मत्तमुवेल्लिय तव्वेगोवुच्छाओ तिसमयकालडिदियाओ धरेदण द्विदोसरिसो। एवमोदारेदव्वं जाव समयूणावलियमेत्तगोवुच्छाओ ओदिण्णाओ त्ति । पुणो तत्थ ठविय वड्डाविजमाणे सम्मामिच्छत्तुव्वेल्लणसम्मत्तचरिमफालिदव्व पुणो सम्मत्तसम्मामिच्छत्तवेगोवुच्छाओ च वड्ढावेदव्वो। एवं वड्डिदेण तस्सेव हेहिमसमए ओदरिय हिदो सरिसो। ६२४४. संपहि सम्मत्तचरिमगुणसंकम-दुचरिमफालिदव्वं सम्मामिच्छत्तुव्वेल्लणदव्वं त्थिउक्कसंकमेण गदसम्मत्त-सम्मामिच्छत्तदोगोवुच्छाओ च एत्थ वड्ढावेदव्वाओ। एवं पड्डिदूण द्विदेण अणंतरहेहिमसमयट्ठिदो सरिसो। एवं सरिसं कादोदारेदव्वं जाव सम्मत्तदुचरिमट्ठिदिखंडयचरिमसमओ ति । पुणो तत्थ वड्डाविञ्जमाणे दोण्हमुव्वेल्लणदव्यमेत्तं वे गोवुच्छाओ च वड्ढावेदव्वाओ। एवं वड्डिदण हिदेण अण्णेगो हेट्ठिमसमयविदो सरिसो। एवं वड्डाविय ओदारेयव्व जाव अधापवत्तसंकमचरिमसमओ त्ति । को पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितियोंको पूरा कर तब तक उतारना चाहिये जब तक सम्यक्त्वकी उद्वेलना कर उसका दो समयकी स्थितिषाला एक निषेक प्राप्त होवे । फिर उस समय जो उद्वेलनाका द्रव्य अन्य प्रकृत्तिको प्राप्त हुआ और स्तिवुक संक्रमणके द्वारा जो सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वको दो गोपुच्छाएँ अन्य प्रकृतिको प्राप्त हुई उन्हें इसके ऊपर बढ़ाना चाहिये । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए इस जीवके द्रव्यके समान एक अन्य जीवका द्रव्य है जो सम्यक्त्वकी उद्वेलना कर तीन समयकी स्थितिवाले सम्यक्त्वकी दो गोपुच्छाओंको धारण करके स्थित है। इस प्रकार एक समय कम आवलिप्रमाण गोपुच्छाओंके उतरने तक उतारते जाना चाहिये । फिर वहाँ ठहरा कर बढ़ाने पर सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलनासे सम्यक्त्वमें हुए अन्तिम फालिके द्रव्यको और सम्यक्त्व तथा सम्यग्मिथ्यात्वकी दो गोपुच्छाओको बढ़ाना चाहिये । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए जीवके समान एक अन्य जीव है जो उसीके एक समय नीचे उतर कर स्थित है। ६२४४. अब यहाँ पर सम्यक्त्वके अन्तिम गुणतक्रमकी द्विचरम फालिके द्रव्यको, सम्यग्मिथ्यात्वके उद्वेलनाके द्रव्यको और स्तिवुक संक्रमणके द्वारा परप्रकृतिको प्राप्त हुई सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी दो गोपुच्छाओंको बढ़ाना चाहिये । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए जीवके समान एक अन्य जीव है जो अनन्तर नीचेके समयमें स्थित है । इस प्रकार उत्तरोत्तर समान करके सम्यक्त्वके द्विचरम स्थितिकाण्डकके अन्तिम समय तक उतारते जाना चाहिये। फिर वहाँ पर द्रव्यके बढाने पर दोनोंके उद्धलनाप्रमाण दव्यको और दो गोपच्छाओंको बढ़ावे । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए जीवके समान अन्य एक जीव है जो नीचेके समयमें स्थित है। इस प्रकार बढ़ाकर अधःप्रवृत्त संक्रमके अन्तिम समय तक उतारना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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