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जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
[ पदेसविहत्ती ५ अदिकं तविगिदिगोकुच्छाए सह पयडिगोवुच्छं गुणसंकमभागहारेण खंडिय तत्थ एयखंडस्स परसरूवेण गमणुवलंभादो । अह जइ तत्थ गुणसंकमभागहारस रूवूणछेदणयमेत्ताओ णाणागुणहाणिसलागाओ होंति तो वयादो विगिदिगोवुच्छा किंचूणदुगुणमेत्ता होदि । एत्तो पहुडि उवरि सव्वत्थ वयादो विगिदिगोवुच्छा अहिया चैव ।
$ १४४. एवं संखेजगुणकमेण गच्छंती विगिदिगोबुच्छा कत्थ वयादो असंखेजगुणा होदितित्ते वच्चदे - विदिखंडए पदिदे संते जाए अवसेसहिदीए जहण्णपरित्तासंखेजयस्स अद्धच्छेदणयसलागाहि यूणगुण' संकमभागहारद्धच्छेदणयमेत्ताओ गुणहाणीओ होंति तत्थ असंखेञ्जगुणा होदि, किंचूणजहण्णपरित्तासंखेज्ज मेत्तगुणगारुवलंभादो । एतो पहुड उवरि सव्वत्थ वयादो विगिदिगोकुच्छा असंखेजगुणा चैव होद्ण गच्छदि, हिदी ज्झीयमाणाए विगिदिगोवच्छावडिदंसणादो । वरि पगदिगोबुच्छादो विगिदिगोच्छा अजवि असंखे ०गुणहीणा, पगदिगोकुच्छा भागहारं पेक्खिदूण बिगिदिगोवुच्छाभागहारस्स असंखेजगुणत्तुवलंभादो । संपहि पगदिगोव च्छादो विगिदिगो वुच्छा असंखे० गुणहीणा होण गच्छंती काए हिदीए सेसाए असंखे० गुणहाणीए पञ्जवसाणं पावदिति वुत्ते वच्चदे – जाए से सहिदीए जहण्णपरित्तासंखेज्जयस्स अद्धच्छेदणयमेत्ताओ गाणागुणहाणि सलागाओ अत्थि तत्थ पजवसाणं । कुदो ? पयदिगोवच्छं जहण्णपरित्ता
विकृतिगोपुच्छा के साथ प्रकृतिगोपुच्छाको गुणसंक्रमभागहार से भाजित करके उसमें से एक भाग का पररूपसे गमन पाया जाता है। अब यदि वहाँ पर गुणसंक्रमभागहार के रूपोन अर्द्धच्छेद प्रमाण नानागुणहानिशलाकाएँ होती हैं तो व्यय से विकृतिगोपुच्छा कुछ कम दुगुनी होती है । यहाँ से लेकर आगे सर्वत्र विकृतगोपुच्छा व्ययसे अधिक ही है ।
१४४. इस तरह संख्यात गुणितक्रमसे जानेवाली विकृतिगोपुच्छा व्ययसे अर्थात् गुणसंक्रमके द्वारा पर प्रकृतिको प्राप्त होनेवाले द्रव्यसे असंख्यातगुणी कहां होती है ऐसा पूछने पर कहते हैं -- स्थितिकाण्डका पतन होने पर जिस बाकीको स्थिति में जधन्यपरीतासंख्यातकी अर्द्धच्छेदशलाकाआं से न्यून गुणसंक्रमभागहार के अर्द्धच्छेदप्रमाण गुणहानियाँ होती हैं वहाँ विकृतिगोपुच्छा असंख्यातगुणी होती है; क्योंकि वहाँ कुछ कम जघन्यपरीतासंख्यातप्रमाण गुणकार पाया जाता है । यहाँसे लेकर आगे सर्वत्र विकृतिगोपुच्छा व्ययसे असंख्यातगुणी ही होती हुई जाती है; क्योंकि उत्तरोत्तर स्थितिका क्षय होने पर विकृतिगोपुच्छा में वृद्धि देखी जाती है। किन्तु प्रकृतिगोपुच्छासे विकृतिगोपुच्छा अब भी असंख्यात - गुणहीन है; क्योंकि प्रकृतिगोपुच्छा के भागहारसे विकृतिगोपुच्छाका भागहार असंख्यातगुणा पाया जाता है ।
शंका- प्रकृतिगोपुच्छासे विकृतिगोपुच्छा उत्तरोत्तर असंख्यातगुणी हीन होती हुई किस स्थितिके शेष रहने पर असंख्यातगुणहानिके अन्तको प्राप्त होती है ?
समाधान - शेष बची हुई जिस स्थितिकी जघन्य परीतासंख्यातके अर्द्धच्छेदप्रमाण नानागुणहानि शलाकाएँ होती हैं वहाँ अन्त होता है; क्योंकि प्रकृतिगोपुच्छाको जघन्य १ आ० प्रतौ 'सल्लागाहियाण गुण' इति पाठः ।
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