SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२६ . जयधवलासहिदे कसायपाहुडे पदेसविहत्ती ५ अपज्जत्तजोगेहिं थोवकम्पपोग्गलग्गहणहं । तप्पाओग्गजहण्णयाणि जोगहाणाणि अभिक्खं गदो त्ति किमटुं बुचदे ? दीहासु अपजत्तद्धासु उक्कस्साणि जोगहाणाणि परिहरिय तप्पाओग्गजहण्णजोगट्ठाणेसु चेव परिभमिदो त्ति जाणावणहं । अपज्जत्तद्धाए एगंताणुवड्डिजोगेहि वड्डमाणस्स गुणगारो जहण्णओ उकस्सओ वि अस्थि । तत्थ अणप्पिदगुणगारपडिसेहटुं तप्पाओग्गजहणियाए वड्डीए वड्डिदो त्ति भणिदं । एदेण जोगावासो परूविदो। बहुअं मोहणीयदव्वमाउअस्स संचारणह जदा जदा आउअं बंधदि तदा तदा तप्पाओग्गउक्कस्सएसु जोगेसु वदि' त्ति भणिदं । एदेण आउआवासो परूविदो । खविदकम्मंसिए सगोकड्डिदद्विदीदो हेट्ठा णिसिंचमाणदव्वं चेव बहुअमिदि जाणावणट्ट हेडिल्लीणं द्विदीणं णिसेयस्स उक्कस्सपदमिदि भणिदं । हेहा बहुकम्मक्खंधाणं णिसेगो किमट्ठ कीरदे ? उदएण बहुपोग्गलणिज्जरण? । एवं संते कमवड्डीए गोवुच्छाणमवट्ठाणं फिट्टिदूण पदेसरयणाए अड्ड-वियड्डत्तं पसजदि त्ति चे होदु, इच्छिन्जमाणत्तादो । एदेण ओकड्डुक्कड्डणावासो परूविदो । तप्पाओग्गमुक्कस्सविसोहिमभिक्खं गदो ति किम वुच्चदे ? कम्मपदेसाणमुवसामणा-णिकाचणा-णिधत्तिकरणाणं समाधान-पर्याप्तके योगोंसे अपर्याप्तके योग असंख्यातगुणे हीन होते हैं अतः उनके द्वारा थोड़े कर्मपुद्गलोंका ग्रहण करनेके लिए अद्धावासको बतलाया है ? शंका-अपर्याप्तकके योग्य जघन्य योगस्थानोंसे निरन्तर युक्त रहा ऐसा क्यों कहा ? समाधान-दीर्घ अपर्याप्तकालोंमें उत्कृष्ट योगस्थानोंको छोड़कर तत्प्रायोग्य जघन्य में ही भ्रमण किया यह बतलानेके लिए कहा है। ___ अपर्याप्तकालमें एकान्तानुवृद्धि नामक योगोंके द्वारा वर्धमान जीवका गुणकार जघन्य होता है और उत्कृष्ट भी होता है। उनमेंसे अविवक्षित गुणकारका निषेध करनेके लिए 'तत्प्रायोग्य जघन्य वृद्धिसे बढ़ा' ऐसा कहा है। इससे योगावास बतलाया । मोहनीयको प्राप्त हो सकनेवाले बहुत द्रव्य आयुकर्मको प्राप्त करानेके लिए 'जब जब आयुका बन्ध किया तब तक तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट योगस्थानों में ही बन्ध किया' ऐसा कहा। इससे आयुरूप आवास बतलाया। 'क्षपितकाशवाले जीवमें अपनी उत्कर्षित स्थितिको अपेक्षा नीचे की स्थिति में स्थापित द्रव्य ही अधिक है' यह बतलानेके लिये 'नीचे की स्थितिके निषेकोंको उत्कृष्ट प्रदेशवाला किया ऐसा कहा 1 शंका-नीचे बहुत कर्मस्कन्धोंका निक्षेप किस लिए किया जाता है ? समाधान-उदयके द्वारा बहुत कर्मपुद्गलोंकी निर्जरा करानेके लिए किया जाता है। शंका-ऐसा होने पर अर्थात् यदि नीचे नीचे बहुत कर्मस्कन्धोंका निक्षेप किया जाता है तो क्रमवृद्धिके द्वारा जो प्रदेशरचनाका गोपुच्छरूपसे अवस्थान बतलाया है वह नहीं रहकर प्रदेशरचनाके अस्त व्यस्त होनेका प्रसंग प्राप्त होता है ? समाधान--प्राप्त होता है नो होओ, वह इष्ट ही है। इससे अपकर्षण-उत्कर्षणरूप आवास बतला दिया। शंका-'निरन्तर तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त हुआ' ऐसा क्यों कहा ? १. आतौ 'वदि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy