SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं १११ पक्खि ताधे कोधस जलणस्स उक्कस्सयं पदेससंतकम्मं । ११९. तेणेवे ति णिद्देसो किमटुं कदो ? उक्कस्सीकदपुरिसवेदेणेव पुरिसवेदछण्णोकसाएसु कोधसंजलणम्मि संकामिदेसु कोधसंजलणपदेसग्गमुक्कस्सं होदि त्ति जाणावणटुं । वेसागरोवमसहस्सेहि ऊणियं कम्महिदि बादरपुढविकाइएसु परिभमिय तदो तसद्विदिसव्वं गेरइएसु समयाविरोहेण परिभमिय कोधसंजलण-छण्णोकसायाणं तत्थ पदेसग्गमुक्कस्सं करिय थोवावसेसाए तसद्विदीए ईसाणदेवेसुप्पन्जिय तत्थ णवंसयवेदपदेसग्गमुक्कस्सं करिय पुणो समयाविरोहेण असंखेजवासाउएसु उप्पञ्जिय पलिदो० असंखे०भागमेत्तकालेण इत्थिवेदमावूरिय पुणो पढमसम्मत्तं पडिवज्जिय पलिदोवमहिदिएसु देवेसुप्पन्जिय पुरिसवेदपदेसग्गमुक्कस्सं करिय मणुसेसु उववण्णो । तत्थ सव्वलहुमट्ठवस्साणमुवरि खवगसेढिपाओग्गो होदूण अपुव्वगुणट्ठाणं पविसिय पुणो तत्थ इत्थि-णqसयवेददव्वं पुरिस-हस्स-रदि-भय-दुगुंछ-चदुसंजलणाणमुवरि गुणसंकमेण संकामेदि । पुरिसवेददव्वं बज्झमाणकसायाणमुवरि अधापवत्तसंकमेण संकामेदि । कसाय-णोकसायदव्वं पि परिसवेदस्सुवरि तेणेव भागहारेण संछुहदि । एवमेदेण कमेण अपुव्वकरणं वोलाविय अणियट्टिअद्धाए संखेज सु भागेसु गदेसु तेरसहं कम्माणमंतरं करिय तदो णबुंसवेदक्खवणं पारभिय पुणो पुरिसवेदस्सुवरि णवुसयवेदं गुणसंकमेण कर देता है तब क्रोधसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होता है। ६ ११९. शंका—'वही जीव' ऐसा निर्देश क्यों किया ? समाधान-पुरुषवेदके उत्कृष्ट प्रदेश सत्कर्मवाले जीवके द्वारा पुरुषवेद और छह नोकषायोंके क्रोध-संज्वलनमें संक्रान्त कर देने पर क्रोध संज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होता है यह बतलानेके लिये किया है। दो हजार सागर कम कमस्थितिकाल तक बादर पृथिवीकायिकोंमें भ्रमण करके, फिर आगमानुसार पूरे त्रसस्थितिकाल तक नारकियों में भ्रमण करके वहाँ क्रोधसंज्वलन और छह नोकषायोंका उत्कृष्ट प्रदेशसंचय करके, त्रसस्थितिकालके थोड़ा शेष रहने पर ईशान स्वर्गके देवोंमें उत्पन्न होकर, वहाँ नपसकवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसञ्चय करके फिर आगमानुसार असंख्यात वर्षकी आयुवाले मनुष्य और तिर्यञ्चोंमें उत्पन्न होकर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण कालके द्वारा स्त्रींवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसञ्चय करके, फिर प्रथम सम्यक्त्वको प्राप्त करके पल्यकी स्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न होकर पुरुषवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसञ्चय करके मनुष्यों में उत्पन्न हुआ। वहाँ सबसे लघु काल आठ वर्षके बाद क्षपकश्रेणिपर चढ़नेके योग्य होकर अपूर्वकरण गुणस्थानमें प्रवेश करके वहाँ स्त्रीवेद और नपसकवेदके द्रव्यको गणसंक्रमभागहारके द्वारा पुरुषवेद, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा और चार संज्वलनकषायोंमें संक्रान्त करता है। पुरुषवेदके द्रव्यको अधःप्रवृत्त संक्रमके द्वारा बध्यमान कषायोंमें संक्रान्त करता है। कषाय और नोकषाय के द्रव्यका भी उसो अधःप्रवृत्तसंक्रम भागहारके द्वारा पुरुषवेदमें संक्रमण करता है। इस प्रकार इस क्रमसे अपूर्वकरणको बिताकर अनिवृत्तिकरणकालके संख्यात बहुमाग बीतने पर तेरह कषायोंका अन्तरकरण करके फिर नपुसकवेदके क्षपणका प्रारम्भ करता है। पुनः उसका प्रारम्भ करते हुए गुणसंक्रमके द्वारा नपुसकवेदको पुरुषवेदमें संक्रान्त करता है । चूंकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy