SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं १०१ आउआणमित्थिवेदबंधगद्धाहिंतो एत्थतणित्थिवेदबंधगद्धाओ दीहाओ त्ति कुदो णव्वदे ? एदम्हादो चेव सुत्तादो। अथवा जुत्तीदो णव्वदे । तं जहा-पुरिसवेदं पेक्खिदूण इत्थिवेदो अप्पसत्थो, कारीसग्गिसमाणत्तादो। तेण इत्थिवेदो संकिलेसेण बज्झइ । विसोहीए पुरिसवेदो। पलिदो० असंखे०भागाउएसु जो संकिलेसकालो सो उवरिमआउअसंकिलेसद्धाहिंतो दीहो, दीहाउएसु पुरिसवेदबंधगद्धाए सविसोहिमंदसंकिलेसपडिबद्धाए पहाणत्तादो त्ति । पलिदो० असंखे०भागाउएसु संकिलेसो बहुओ त्ति कुदो णव्वदे ? सव्वत्थोवो तिपलिदोवमाउअसंकिलेसो। दुपलिदोवमाउअसंकिलेसो अणंतगुणो। एगपलिदोवमाउटिदियाणं संकिलेसो अणंतगुणो। पलिदो० असंखे०भागमेत्ताउढिदियाणं संकिलेसो अणंतगुणो त्ति एदम्हादो अप्पाबहुअसुत्तादो। तेण तिपलिदोवमाउट्ठिदिएसु इत्थिवेदबंधगद्धा थोवा । दुपलिदोवमाउढिदिएसु इत्थिवेदबंधगद्धा संखे०गुणा। एगपलिदोवमाउडिदिएसु इत्थिवेदबंधगद्धा संखेजगुणा । पलिदो० असंखे०भागमेत्ताउडिदिएसु इत्थिवेदबंधगद्धा संखेजगुणा त्ति सिद्धं । अद्धाओ विसेसाहियाओ त्ति किण्ण घेप्पदे ? ण, विसयपडिभागेण अद्धागुणगारुप्पत्तीदो। तस्स शंका-ऊपरकी आयुवाले जीवोंके स्त्रीवेदके बन्धककालसे पल्यके असंख्यातवें भाग आयुवाले जीवोंका स्त्रीवेदका बन्धककाल अधिक है, यह किस प्रमाणसे जाना ? समाधान—इसी चूर्णिसूत्रसे जाना । अथवा युक्तिसे जाना। वह युक्ति इस प्रकार हैपुरुषवेदकी अपेक्षा स्त्रीवेद अप्रशस्त है, क्योंकि वह कण्डेकी आगके समान होता है। अतः स्त्रीवेद संक्लेश परिणामसे बँधता है और पुरुषवेद विशुद्ध भावोंसे बंधता है। पल्यके असंख्यातवें भाग आयुवालोंमें जो संक्लेशका काल है वह ऊपरकी आयुवाले जीवोंके संक्लेशसे सम्बन्ध रखनेवाले कालसे अधिक है, क्योंकि दीर्घ आयुवाले जीवोंमें विशुद्धि सहित मंद संक्लेशसे सम्बन्ध रखनेवाले पुरुषवेदके बन्धककालकी प्रधानता होती है। शंका-पल्यके असंख्यातवें भाग आयुवालों में संक्लेश बहुत है यह किस प्रमाणसे जाना ? समाधान—तीन पल्यकी आयुवाले जीवोंमें संक्लेश सबसे कम है। उससे दो पल्यकी आयुवाले जीवोंमें अनन्तगुणा संक्लेश है। उससे एक पल्यको आयुवाले जीवोंमें अनन्तगुणा संक्लेश है। उससे पल्यके असंख्यातवें भाग आयुवाले जीवोंमें संक्लेश अनन्तगुणा है। इस अल्पबहुत्वको बतलानेवाले सूत्रसे जाना। अतः तीन पल्यकी आयुवाले जीवोंमें स्त्रीवेदका बन्धककाल सबसे थोड़ा है। दो पल्यकी आयुवाले जीवोंमें स्त्रीवेदका बन्धककाल संख्यातगुणा है । एक पल्यकी आयुवाले जीवों में स्त्रीवेदका बन्धककाल संख्यातगुणा है और पल्यके असंख्यातवें भागमात्र स्थितिवाले जीवोंमें स्त्रीवेदका बन्धककाल उससे भी संख्यातगुणा है, यह सिद्ध हुआ। शंका-यहाँ वेदके बन्धककाल विशेष अधिक हैं एसा क्यों नहीं स्वीकार करते ? समाधान नहीं, क्योंकि विषयके प्रतिभागके अनुसार ही कालका गुणकार उत्पन्न होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy