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________________ ९६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ पुव्वभागहारद्धं भागहारो । एवं किंचूणतिभाग-चदु०भागादिकमेण णेदव्वं जाव णqसयवेदवंधगद्धाचरिमसमओ त्ति। तदद्धाचरिमसमए णqसयवेदबंधगद्धोवट्टिदअंगुलस्स असंखे भागो किंचूणो भागहारो होदि । पुणो इत्थि-पुरिसबंधगद्धाओ वोलाविय उवरिमसमए बद्धणqसयवेददव्वस्स तिवेदद्धाहि ओवट्टिदअंगुलस्स असंखे भागो किंचूणो भागहारो होदि । एदम्हादो उवरि रूवाहियकमेण अंगुलस्स असंखे०भागभूदभागहारस्स भागहारो वड्डमाणो गच्छदि जाव अंतोमुत्तमेत्तविदियबंधगद्धाचरिमसमओ त्ति । पुणो दुगुणिदतिवेदबंधगद्धाहि ओवट्टिदअंगुलस्स असंखे०भागो किंचूणो भागहारो होदि । एवं जाणिदण णेदव्वं जावीसाणदेवचरिमसमयआउ ति । ६१०७. संपहि समयपबद्धपमाणाणुगमो बुच्चदे। तं जहा—कम्मट्ठिदिअभंतरे तस-थावरबंधगद्धासु जदि दिवढगुणहाणिमेत्ता समयपबद्धा तिण्हं वेदाणं लब्भंति, तो थावरबंधगद्धाए किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए दिवडगुणहाणिं संखेजखंडाणि कादण तत्थ बहुखंडमेत्ता समयपबद्धा लभंति, तसवधं पेक्खिदूण थावरबंधगद्धाए संखे गुणत्तादो । एदे सव्वे वि समयपबद्ध गर्बुसयवेदो' चेव लहइ, थावरबंधकाले इत्थिपुरिसवेदाणं बंधाभावादो। एदं दव्वं पुध दृविय पुणो जो द्रव्य बाँधा उसका भागहार पूर्व भागहारके आधेसे कुछ कम है। इस प्रकार नपुंसकवेदके बन्धककालके अन्तिम समय पर्यन्त तीसरे आदि समयोंमें बँधनेवाले द्रव्यका भागहार पूर्व भागहारसे कुछ कम तिहाई, कुछ कम चौथाई आदि क्रमसे जानना चाहिये । नपुंसकवेदके बन्धककालके अन्तिम समयमें भागहारका प्रमाण अंगुलके असंख्यातवें भागमें नपुंसकवेदके बन्धकालका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उससे कुछ कम है। पुनः स्त्रीवेद और पुरुषवेदके बन्धककालको बिताकर उससे ऊपरके समयमें बंधनेवाले नपुंसकवेदके द्रव्यका भागहार अंगुलके असंख्यातवें भागमें तीनों वेदोंके कालका भाग देने पर जो लब्ध आवे उससे कुछ कम होता है। इससे ऊपर नपुंसकवेदके अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण द्वितीय बन्धक कालके अन्तिम समय पयन्त अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण भागहारका भागहार रूपाधिक क्रमसे बढ़ता जाता है। इसके बाद पुनः स्त्रीवेद और पुरुषवेदके बन्धककालको बिताकर उससे ऊपरके समयमें बंधनेवाले नपुंसकवेदके द्रव्यका भागहार अंगुलके असंख्यातवें भागमें द्विगुणित तीनों वेदोंके बन्धकालका भाग देनेसे जो लब्ध आवे उससे कुछ कम होता है। इस प्रकार भागहारको जानकर ईशान स्वर्गके देवकी आयुके अन्तिम समय पर्यन्त ले जाना चाहिये। ६१०७. अब समयप्रबद्धोंके प्रमाणका अनुगम करते हैं। वह इस प्रकार है-कर्मस्थिति कालके अन्दर त्रस और स्थावर प्रकृतियोंके बन्धककालोंमें यदि तीनों वेदोंके समयप्रबद्ध डेढ़ गुणहानिप्रमाण पाये जाते हैं तो स्थावरबन्धककालमें कितने समयप्रबद्ध प्राप्त होते हैं इस प्रकार राशिक करके फलराशिसे इच्छाराशिको गुणा करके उसमें प्रमाणराशिका भाग देनेसे डेढ़ गुणहानिक संख्यात खण्ड करके उनमेंसे बहुखण्डप्रमाण समयप्रबद्ध प्राप्त होते हैं, क्योंकि त्रसबन्धककालकी अपेक्षा स्थावर बन्धककाल संख्यातगणा है । ये सब समयप्रबद्ध नपुंसकत्रेदके ही होते हैं, क्योंकि स्थावर बन्धकालमें स्त्रीवेद और पुरुषवेदके बन्धका अभाव है। इस १. ता०प्रतौ ‘णqसयवेदा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001412
Book TitleKasaypahudam Part 06
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1958
Total Pages404
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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