SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० २२ ] अणुभागविहत्तीए कालो २३ ३२. इंदियाणुवादेण बादरेइदिएमु अणुक्क० जह० खुद्दाभवग्गहणं अंतोमुहुत्तूणं, उक्क० अंगुलस्स असंखे०भागो असंखेजासंखेजाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ । बादरेइंदियपज्जत्तएस अणुक्क० जह० उक्कस्साणुभागेकालेणूणमंतोमुहुत्तं, उक्क० संखेज्जाणि वाससहस्साणि । बादरेइंदियअपज्जत्तएसु अणुक्क० ज० उक्कस्साणुभागकालेणणं खुद्दाभवग्गहणं, उक्क० अंतोमु० । सुहुमेइंदिएमु अणुक्क० जह• उक्कस्साणुभागकालेणूणं खुद्दाभवग्गहणं, उक्क० असंखेज्जा लोगा । मुहुमेइंदियपज्जत्तएसु अणुक्क० ज० उक्कस्साणुभागकालेणूणमंतोमुहुत्तं, उक्क० सयलमंतोमु० । मुहुमेइंदियअपज्जत्ताणं बादरेइंदियअपज्जत्तभंगो। विगलिंदिय-विगलिंदियपज्जत्ताणं अणुक्क० ज० उक्कस्साणुभागकालेणणं खुद्दाभवग्गहणमंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण संखेज्जाणि वाससहस्साणि । पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्तएसु उक्कस्साणुभागो जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमु० । अणुक्क० जह० एगस०, उक्क० सागरोवमसहस्साणि पुवकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि सागरोवमसदपुधत्तं । जाता है और जो अनुत्कृष्ट अनुभागके साथ इन देवोंमें उत्पन्न होता है उनके जीवन भर अनुत्कृष्ट अनुभाग पाया जाता है। इसीसे यहाँ उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट दोनों प्रकारके अनुभागका जघन्य काल अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण कहा है। ६ ३२. इन्द्रियकी अपेक्षा बादर एकेन्द्रियोंमें अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल अन्तमुहूर्त कम क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण और उत्कृष्ट काल अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है जो कि असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी प्रमाण होता है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल उत्कृष्ट अनुभाग कालसे कम अन्तमुहूर्त प्रमाण है और उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंमें अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिवा जघन्य काल उत्कृष्ट अनुभागके कालसे कम क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है। सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल उत्कृष्ट अनुभागके कालसे कम क्षुद्र भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल असंख्यात लोक है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकों में अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल उत्कृष्ट अनुभागके कालसे कम अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट काल सम्पूर्ण अन्तमुहूर्त प्रमाण है । सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तके समान भंग है। विकलेन्द्रिय तथा विकलेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल उत्कृष्ट अनुभागके कालसे हीन क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण और अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है। पञ्चन्द्रिय, और पञ्चन्द्रिय पर्याप्तकोंमें उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त है । अनुत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल क्रमसे पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक एक हजार सागर और सौ पृथक्त्व सागर है। ... विशेषार्थ बादर एकेन्द्रियका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण है, जो जीव उत्कृष्ट अनुभागको लेकर बादर एकेन्द्रियमें उत्पन्न होता है वह एक अन्तमुहूर्तमें उसका घात कर देता है, अतः उसके अनुत्कृष्ट अनुभागका जघन्य काल अन्तमुहूर्त कम क्षुद्रभवप्रमाण बतलाया है तथा उत्कृष्ट काल बादर एकेन्द्रियकी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण बतलाया है। आगे भी विकलेन्द्रिय पर्याप्तक १. ता. प्रतौ अणुक्क जहरणुक्कस्सागुभाग- इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy