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________________ ३८४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ जीवरासिणा खंडिय तत्थेगखंडेणूण संपहियजहण्णहाणमब्भवसिदिएहि अणंतगुणं सिद्धाणमणंतिमभागमेत्तभागहारेण खंडिय तत्थेगखंडेण अहियत्तादो। उवरिमपंतीए विदियघादट्टाणेण वि सरिसं ण होदि, विहज्जमाणरासीणं अवहाररासीणं च सरिसत्ताभावादो। ६२०. तम्हि चेवाणुभागबंधटाणे तिचरिमअज्झवसाणहाणेण घादिदे अण्णं घादहाणमुप्पज्जदि । एदं पि अपुणरुतं । कारणं चिंतिय वत्तव्यं । एवमेदम्हि अणुभागबंधहाणे घादिजमाणे वि असंखेजलोगमेत्ताणि घादहाणाणि अपुणरुत्ताणि उप्पजंति, अणुभागघादहेदुपरिणामाणमसंखेजलोगपरिमाणतादो । पज्जवसाणअणुभागबंधहाणे घादिजमाणे उप्पण्णअणुभागधादट्टाणेहिंतो दुचरिमअणुभागबंधहाणघादजणिदअणुभागहाणाणि सरिसाणि, घादहेदुविसोहिहाणाणं समाणत्तादो। पुणो तेणेव चरिमपरिणामेण तिचरिमउव्वंके धादिदे विदियपरिवाडीए उप्पण्णहदसमुप्पत्तियसव्वजहण्णहाणादो हेटा अणंतभागहीणं होद्ग अण्णमपुणरुत्तहाणमुप्पज्जदि। झीयमाणदव्वागमणं पडि को एत्थ भागहारो ? रूवाहियसव्वजीवरासी। पुणो दुचरिमपरिणामेण तिचरिमउव्वंके घादिदे तदियपंतिजहरणहाणादो अणंतभागब्भहियं होदण अण्णमपुणरुतहाणमुप्पज्जदि। को एत्थ वडिभागहारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो नहीं है, क्योंकि पहलेका जघन्य स्थान सब जीवराशिका भाग देने पर जो एक भाग लब्ध आवे उतना न्यून है और साम्प्रतिक जघन्य स्थान अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण भागहारका भाग देने पर जो वहां एक भाग लब्ध आता है उतना अधिक देखा जाता है। तथा यह घातस्थान ऊपरकी पंक्तिमें स्थित दूसरे घातस्थानके भी समान नहीं है, क्योंकि भाज्य राशियां और भाजक राशियां समान नहीं हैं। ६२०. उसी अनुभागवन्धस्थानका त्रिचरम अध्यवसायस्थानके द्वारा घात किये जाने पर अन्य घातस्थान उत्पन्न होता है। यह घातस्थान भी अपुनरुक्त है। इसके अपनरुक्त होनेका कारण विचार कर कहना चाहिये। इस प्रकार इस अनुभागबन्धस्थानका भी घात किये जाने पर असंख्यात लोकप्रमाण अपुनरुक्त घातस्थान उत्पन्न होते हैं, क्योंकि अनुभागके घातके कारणभूत परिणाम असंख्यात लोकप्रमाण हैं। द्विचरम अनुभागबन्धस्थानके घातसे उत्पन्न अनुभागस्थान अन्तिम अनुभागबन्धस्थानके घातसे उत्पन्न अनुभागघातस्थानोंके बराबर ही होते हैं, क्योंकि घातके कारणभूत विशुद्धिस्थान दोनों के समान हैं । पुन: उसी अन्तिम परिणामके द्वारा त्रिचरम उर्वकका घात किये जाने पर दूसरी परिपाटीसे उत्पन्न होनेवाले सर्व जघन्य हतसमुत्पतिकस्थानसे नीचे अनन्तभागहीन होकर दूसरा अपुनरुक्तस्थान उत्पन्न होता है। शंका-हीयमान द्रव्यका प्रमाण लानेके लिये यहां भागहारका प्रमाण क्या है ? समाधान-एक अधिक सर्व जीवराशि।। पुनः द्विचरम परिणामके द्वारा त्रिचरम उर्वकका घात किये जाने पर अन्य अपुनरुक्त स्थान उत्पन्न होता है, जा कि तीसरी पंक्तिके जघन्यस्थानसे अनन्तवें भागप्रमाण अधिक है। शंका-यहां पर वृद्धिका भागहार क्या है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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