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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ अणुभागवित्ती ४ $ ५६६. संपहि छट्ठवग्गणपमाणेण सव्वदव्वे अवहिरिज्जमाणे सादिरेयतिरिणख्वाहियदिवडुगु णहाणिमेतकाले अवहिरिज्जदि । दिवगुणहाणि मेत पढमवग्गणासु agarगणपमाणे अवणिदे अवणिदसेस अद्धहमगुणहाणिमेत्तवग्गणविसेसेसु सादिरेयतिन्हं रूवाणमुवलंभादो । चत्तारि रुवाणि ण पूरंति, वीसवग्गणविसेसहीणअद्धगुणहाणिवग्गणविसेसाणमभावादो । ९ ६००. संपहि सत्तमवग्गणपमाणेण सव्वदव्वे अत्रहिरिज्जमाणे सादिरेयचदुरूवाहियदिवडूगुणहाणिद्वाणंतरेण कालेण अवहिरिज्जदि । दिवडुगुणहाणिमेत्तपढमवग्गणासु सत्तमवग्गणाए अवणिदाए तत्थुव्वरिदणवगुणहाणिमेत्तवग्गणविसेसेसु ३६० प्रमाण (६६) लम्बा रहता है। अलग किये हुए क्षेत्र ( डेढ़ गुणहानि १३x६४×४४४= ६X६४X४) में से पाँचवी वर्गणा पूरी चार (४६६x४ = १२४ × ४४४) प्राप्त नहीं होतीं, क्योंकि ( १२४ × ४ x ४ - ६ x ६४X४=११२X४=२x६४ - १६x४ = १२८ - १६x४ ) सोलह कम दो गुणहानिप्रमाण वर्गणाविशेषोंकी कमी है, इसलिए समस्त द्रव्यको पाँचवी वर्गणाके प्रमाणसे करनेपर वह तीन अधिक डेढ़ गुणहानिसे कुछ अधिक कालके द्वारा अपहृत होता है यह कहा है । =९९ १११ १२३ 1 ४९२ ९ ५९९, अब छटी वर्गणा के प्रमाण से समस्त द्रव्यका अपहरण करने पर वह तीन अधिक डेढ़ गुणहानिसे कुछ अधिक कालके द्वारा अपहृत होता है । डेढ गुणहानिप्रमाण प्रथम वर्गणाओं से छटी वर्गणाके प्रमाण को अलग करने पर अलग किये गये क्षेत्र साढ़े सात गुणहानिमाण वर्गणाविशेषोंमें छटी वर्गणाएं कुछ अधिक तीन प्राप्त होती हैं। पूरी चार नहीं प्राप्त होतीं, क्योंकि बीस वर्गणाविशेष कम अर्द्ध गुणहानिप्रमाण वर्गणाविशेत्रों का अभाव है । विशेषार्थ - छठवीं वर्गणा ( ४६२ ) से समस्त द्रव्य ४९१५२ का अपहरण करनेपर तीन अधिक डेढ़ गुणहानि (६६ + ३ = ९९ ) से कुछ अधिक काल आता है ४९१५२. पूर्वोक्त प्रकार से डेढ़ गुणहानि लम्बे और पाँच वर्गणाविशेष प्रमाण चौड़े क्षेत्रको अलग करने पर छठवीं वगणाप्रमाण (४९२ ) चौड़ा और डेढ़ गुणहानिप्रमाण (६६) लम्बा क्षेत्र शेष रहता है । अलग किए हुए साढ़े सात गुणहानि वर्गणाविशेष प्रमाण ( १३ गुणहानि ४५ वर्गणाविशेष गुणहानिप्रमाण वर्गणाविशेष = १५ x ६४ x ४ ) क्षेत्र में कुछ अधिक तीन छटी वर्गणाएँ प्राप्त होती हैं ( २ ×६४ x ४ = ३×१२३x४ + १११x४ ) । छठवीं वर्गणा पूरी चार नहीं प्राप्त होतीं, क्योंकि बीस कम अर्ध गुणहानिप्रमाण वर्गणाविशेषों की कमी है (४× १२३x४ - ३५ ×६४×४ = १२x४ = - २०x४ । अतः सब द्रव्यको छठवीं वर्गरणाके प्रमाणसे करने पर वह तीन अधिक डेढ़ गुणहानिसे कुछ अधिक कालके द्वारा अपहृत होता है यह कहा है । २ ६४ २ $ ६००. अब सप्तम वर्गणा के प्रमाण से समस्त द्रव्यका अपहरण करनेपर वह कुछ विशेष चार अधिक डेढ़ गुणहानिप्रमाण काल द्वारा अपहृत होता है। डेढ़ गुणहानिप्रमाण प्रथम वर्गणाओं में से सातवीं वर्गणा के अलग करने पर वहां शेष रहे नौ गुणहानिप्रमाण वर्गणाविशेषोंमें १. ता० ग्रा० प्रत्योः - मेवग्गणासु इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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