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________________ जयधवला सहिदे कसायपाहुडे [ अणुभागविहत्ती ४ दुरूवाहियगुणहाणिमेत्तवग्गणविसेसखेत्तमहियमत्थि । तम्हि तदियवग्गणपमाणेण कीरमाणे तप्पमाणं ण पूरेदि, चदुरूवूणगुणहाणिमेत्तवग्गणविसेसाणमभावादो । तेण सादिरेयरूवाहियदिवडूगुणहाणिद्वाणंतरेण कालेन वहिरिज्जदि ति सिद्धं । ३५८ $ ५६७, संपहि चउत्थवग्गण पमाणेण सव्वदव्वे अवहिरिज्जमाणे सादिरेयदुरूवाहियदिवगुणहाणिहाणंतरेण कालेन अवहिरिज्जदि । तं जहा - दिवडगुणहाणिमेत विक्खंभतिष्णिवग्गणदिसेसमेत्तखेत्ते अवणिदे अवसेसखेत्तं दिवडूगुणहाणिविक्खंभेण चउत्थवग्गणआयामेण अवचिदृदि । पुणो अवणिदतिरिणफालीओ तप्पमाणेण कस्सामो— तिरूवूर्णवेगुणहाणिमेत्तवग्गणविसेस एगा चउत्थवग्गणा होदि ति अद्धवंचमगुणहाणिमेत्तवग्गणाविसेसेसु वेच उत्थवग्गणाओ सादिरेयाओ होंति तिरिण ण पूरेंति, ग्रहण करके पहिले क्षेत्र पर रखने पर भागाहारमें एक रूपकी अधिकता प्राप्त होती है । पुनः दो अधिक गुणहानिप्रमाण वर्गणाविशेष क्षेत्र अधिक है उसे तृतीय वर्गरणा के प्रमाणसे करने पर उसके प्रमाणको पूरा नहीं करता, क्योंकि चार कम गुणहानिप्रमारण वर्गणाविशेषोंका अभाव है । अतः सातिरेक एक अधिक डेढ़ गुणहानि स्थानन्तर कालके द्वारा वह अपहृत होता है यह सिद्ध हुआ । विशेषार्थ - तृतीय वर्गरणाका प्रमाण ( ५०४ ) प्रथम वर्गणा के प्रमाण (५१२) से दो वर्गणा विशेष (२४) कम होता है। पूर्वोक्त प्रकारसे प्रथम वर्गणाप्रभारण चौड़ा और डेढ़ गुणहानि प्रमाण लम्बा क्षेत्र स्थापित करके उसमें से एक एक वर्गणाविशेषप्रमाण चौड़ी और डेढ़ गुणहानिप्रमाण लम्बी दो फालियोंको अलग करने पर शेष क्षेत्र तृतीय वर्गणाप्रमाण चौड़ा और डेढ़ हानिप्रमाण लम्बा ( ५०४४९६ ) स्थित रहता है । पुनः उन दो फालियोंको आयामके साथ जोड़ने से ( १३ गुणानि वर्गणाविशेष + १३ गुणहानि वर्गणाविशेष ) तीन गुणहानि वर्गणाविशेष होते हैं (६४×३x४) = १९२४४ | इसको तृतीय वर्गरणा ( ५०४ = १२६x४ ) के प्रमाणसे करने पर एक तृतीय वर्गणा और दो अधिक गुणहानि ( ६४ + २=६६) वर्गरणाविशेष प्रमाण क्षेत्र शेष रह जाता है ( १९२४४ - १२६४४ =६६४४) । इस शेष क्षेत्र ( ६६x४ ) की पूरी तृतीय वर्गणा नहीं होती, क्योंकि ( १२६४४ - ६६x४ = ६०४४ ) चार कम गुणहानिप्रमारण ( ६४ - ४ = ६० ) वर्गणाविशेष ( ४ ) की कमी है । अतः तृतीय वर्गरणाका पहार काल कुछ ६६ ६६ ४६१५२ विशेष एक अधिक डेढ़ गुणहानिप्रमाण है ९६+१+ =९७ १२६ १२६ ५०४ '= ९७ ६६ १२६ Jain Education International , $ ५९७. अब चतुर्थ वर्गणा के प्रमाण के द्वारा समस्त द्रव्यको अपहृत करने पर दो अधिक डेढ़ गुणहानिसे कुछ अधिक स्थानान्तर कालके द्वारा अपहृत होता है । उसका खुलासा इस प्रकार है - डेढ़ गुणहानिप्रमाण लम्बे और तीन वर्गणाविशेष प्रमाण चौड़े क्षेत्रको अलग करने पर शेष क्षेत्र डेढ़ गुणहानि प्रमाण लम्बा और चतुर्थ वर्गणाप्रमाण चौड़ा अवस्थित रहता है । फिर लगी हुई तीन फालियों को चतुर्थ वर्गरण के प्रमाणसे करते हैं -- यदि तीन कम दो गुणहानिप्रमाण वर्गणाविशेषोंकी एक चतुर्थ वर्गणा होती है तो साढे चार गुणहानिप्रमाण वर्गणाविशेषोंकी चतुर्थ वर्गणाऐं कुछ अधिक दो होती हैं, तीन पूरी तीन नहीं होतीं; क्योंकि १ ता० प्रतौ कस्सामो ति रूवूण- इति पाठः । For Private & Personal Use Only I www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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