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________________ गा० २२] . अणुभागविहत्तीए हाणपरूवणा ३४९ गुणिदेसु सव्वजीवेहि अणंतगुणा कम्मपरमाणू होति, विरोहादो। एक कफदए वि अभवसिद्धिएहि अणंतगुण-सिद्धाणमणंतिमभागमेत्ताओ वग्गणाओ होति । ताओ च सव्वफदएसु संखाए समाणाओ । कदो ? साहावियादो । एवं वग्गणपमाणपरूवणा गदा। ५८०. जहण्णफदए वग्गणाओ थोवाओ । अजहएरणेसु फदएसु वग्गणाओ अणंतगुणाओ । सव्येसु फद्दएस वग्गणाओ विसेसाहियाओ। एवं वग्गणपरूवणा गदा। ५८१. फद्दयपरूवणं तेहि चेव तीहि अणियोगद्दारेहि भणिस्सामो । तं जहाअत्थि जहण्णं फद्दयं । एवं णेदव्वं जावुकस्सफदयं ति । परूवणा गदा। $ ५८२. जहण्णए हाणे अभवसिद्धि एहि अणंतगुणसिद्धाणंतिमभागमेत्ताणि फद्दयाणि । पमाणपरूवणा गदा । ५८३. सव्वत्थोवं जहण्णफद्दयं, एगसंखत्तादो । अजहण्णफदयाणि अणंतगुणाणि । को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतिमभागमेत्तो । सव्वाणि फद्दयाणि विसेसाहियाणि एगरूवेण । अधवा अविभागपडिच्छेदे अस्सिदण उच्चदे-जहण्णफद्दयं थोवं । उक्कस्सफदयमणंतगुणं । को गुणगारो ? सव्वजीवेहि अणंतगुणो । अजहण्णअणुक्कस्सफद्दयाणि अणंतगुणाणि । को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अगंतगुणो सिद्धाणंतिमभागमेतो । अणुकस्सफदयाणि विसेसाहियाणि । अजहण्णपरमाणुओ को कमों की स्थितिसे गुणा करने पर समस्त कर्म परमाणु सब जीवोंसे अनन्तगुणे नहीं होते हैं, क्योंकि ऐसा होने में विरोध आता है। ___ एक एक स्पर्धकमें भी अभव्य राशिसे अनन्तगुणी और सिद्धराशिके अनन्तवें भागप्रमाण वर्गणाएँ होती हैं। वे वर्गणाएँ संख्यामें सभी स्पर्धकोंमें समान होती हैं, क्योंकि ऐसा होना स्वाभाविक है । इस प्रकार वर्गणाकी प्रमाणप्ररूपणा समाप्त हुई। ५८.. जघन्य स्पर्धकमें थोड़ी वर्गणाएँ हैं। उनसे अजघन्य स्पर्धकोंमें अनन्तगुणी वर्गणाएं हैं। उनसे सब स्पर्धकोंमें विशेष अधिक वर्गणाएँ हैं। इस प्रकार वर्गणाप्ररूपणा समाप्त हुई। ५८१. उन्हीं तीन अनुयोगद्वारोंका आश्रय लेकर स्पर्धकका कथन करते हैं। यथा-- जघन्य स्पर्धक है । इस प्रकार उत्कृष्ट स्पर्धक पर्यन्त ले जाना चाहिये । प्ररूपणा समाप्त हुई। १५८२. जघन्य अनुभागस्थानमें अभव्यराशिसे अनन्तगुणे और सिद्धराशिके अनन्तवें भागप्रमाण स्पर्धक होते हैं। प्रमाणप्ररूपणा समाप्त हुई। ५८३. जघन्य स्पर्धक सबसे थोड़ा है, क्योंकि उसकी संख्या एक है। उससे अजघन्य स्पर्धक अनन्तगुणे हैं। गुणकारका प्रमाण क्या है ? अभव्यराशिसे अनन्तगुणा और सिद्धराशि के अनन्तवें भागप्रमाण गुण कार का प्रमाण है। उनसे सभी सर्धक विशेष अधिक हैं, क्योंकि अजघन्य स्पर्धकोंसे इनमें एक स्पर्धक अधिक होता है । अथवा अविभागप्रतिच्छेदोंकी अपेक्षा कहते हैं -जघन्य स्पर्धक थोड़ा है । उससे उत्कृष्ट स्पर्धक अनन्तगुणा है । गुणकार क्या है ? सब जीवोंसे अनन्तगुणा गुणकार है। अजघन्य अनुत्कृष्ट स्पर्धक अनन्तगुणे हैं । गुणकार क्या है ? अभव्यराशिसे अनन्तगुणा और सिद्धराशिके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है। अनुत्कृष्ट स्पर्धक anirnar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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