SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 377
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Mirmirrrrrrrrr. ३४८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ अणुभागविहत्ती ४ ५७८. वग्गणपरूवणदाए ताणि चेव तिरिण अणियोगदाराणि । तत्थ परूवणदाए अत्थि जहणिया वगणा। एवं णेदव्वं जाव उक्कस्सवग्गणे ति। एवं परूवणा गदा। $ ५७६. पमाणं वुच्चद्दे-अणंतेहि सरिसधणियपरमाणूहि एगा वग्गणा होदि, दबहियणयावलंबणादो। पज्जवटियणए पुण अवलंबिदे वग्गो वि वग्गणा होदि । णिव्वियप्पवग्गस्स कथं वगणतं ? ण, उवरिमएगोलिं पेविखण सवियप्पस्स वग्गणतं पडि विरोहाभावादो। विरोहे वा महाखंडवग्गणाए धुवसुण्णवग्गणाणं च ण वग्गणतं होज्ज, सरिसपणियाभावादो। ण च एवं, वग्गणाणं तेवीससंखाए अभावप्पसंगादो। जहरणटाणसावरगाणाओ वि अभवसिद्धिएहि अणंतगुणाओ सिद्धाणमणंतिमभागमेताओ। कदो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुण सिद्धाणमणंतिमभागमेत्तकम्मपरमाणूहि णिप्पण्णत्तादो। एगम्मि जीवे सयजीवेहि अणंतगुणा परमाणू किरण मिलंति ? ण, मिच्छत्तादिपच्चएहि आगच्छमाणपरमागुणमभवसिद्धिएहि अणंतगुणसिद्धाणंतिषभागपमाणत्तवलंभादो। ण च एत्तिएसु कम्मपरमाणुपोग्गलेसु कम्महिदीए प्रतिच्छेद विशेष अधिक हैं। कितने अधिक हैं ? जघन्य वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेर्दो का जितना प्रमाण है उतने अधिक है। इस प्रकार अविभागप्रतिच्छेदप्ररूपणा समाप्त हुई। ६५७८. वर्गणाप्ररूपणामें भी थे ही तीन अनुयोगद्वार हैं, प्ररूपणा, प्रमाण और अल्पबहुत्व । उनमेंसे प्ररूपणाकी अपेक्षा जघन्य वर्गणा है। इस प्रकार उत्कृष्ट वर्गणा पर्यन्त ले जाना चाहिये । इस प्रकार प्ररूपणा समाप्त हुई। ६५७६. अब प्रमाणको कहते हैं-द्रव्यार्थिकनयके अवलम्बनसे समान अविभागप्रतिच्छेदों के धारक अनन्त परमाणुओंकी एक वर्गणा होती है। किन्तु पर्यायर्थिकनयका अवलम्बन करने पर एक वर्ग भी वर्गणा होता है। __ शंका-वर्ग तो विकल्प रहित है, उसको वर्गणः कैसे कहा जा सकता है ? समाधान-नहीं, क्योंकि उपरिम एक पंक्तिको देखते हुए पंक्तिका वर्ग भी सविकल्प है, अत: उसके वर्गणा होने में कोई विरोध नहीं है। यदि विरोध हा तो महात्कन्धवर्गणा और ध्रुवशून्य वर्गणाएँ भी वगणा नहीं हो सकतीं; क्योंकि उनमें सनान धनवालोंका अभाव है। किन्तु ऐसा नहीं है, क्योंकि ऐसा होनेसे वर्गणाओंकी जो तेईस संख्या बतलाई है उसके अभावका प्रसंग प्राप्त होता है। ___ जघन्य अनुभागस्थानकी सब वर्गणाएं भी अभव्यराशिसे अनन्तगुणी और सिद्धराशिके अनन्तवें भागप्रमाण हैं, क्योंकि वे अभ राशिसे अनन्तगुणे और सिद्धराशिके अनन्तवें भागप्रमाण कर्मपरमाणुओंसे बनी हैं। शंका-एक जीवमें सब जीवोंसे अनन्तगुणे परमाणु क्यों नहीं एकत्र होते हैं ? समाधान नहीं; क्यो कि मिथ्यात्व आदि कारणों से बन्धको प्राप्त होनेवाले परमाणु अभव्यराशिसे अनन्तगुणे और सिद्धराशिके अनन्तवें भागप्रमाण ही पाये जाते हैं। इतने कर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy