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________________ .wwwwwwwwwwww ३३८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ मु हचरिमसमयमिच्छादिहिस्स जहण्णबंधो किण्ण गहिदो ? ण, तत्थतणजहण्णबंधादो .. तत्थेवाणुभागसंतकम्मस्स अणंतगुणत्तुवलंभादो। जदि एवं तो संजमाहिमुहचरिमसमयमिच्छाइटिस्स अणुभागसंतकम्म घेतव्वं, सुहुमेइंदियस्स सव्वु कस्सविसोहीदो अणंतगुणसण्णिपंचिंदियंसंजमाहिमुहमिच्छाइहिचरिमसमयविसोहिए पत्तघादत्तादो त्ति ? ण, तस्स सुहुमेइंदियजहण्णाणुभागसंतकम्मादो अणंतगुणत्तुवलंभादो। तदणंतगुणत्तं कुदोणव्वदे १ सव्वत्थोवो संजमाहिमुहसव्वविसुद्धचरिमसमयमिच्छादिहिस्स जहपणाणुभागबंधो । असएिणपंचिंदियस्स सव्वविसुद्धस्स जहण्णाणु०बंधो अणंतगुणो । चरिंदिय० जहण्णाणु०बंधो अणंतगुणो। तेइंदिय० जहण्णाणु०बंधो अणंतगुणो । वेइंदिय० जहण्णाणु० अणंतगुणो । बादरेइंदिय० जहण्णाणु०बंधो अणंतगुणो। मुहमेइंदियअपज्ज. सव्व विसुद्धस्स जहण्णाणुभागबंधो अणंतगुणो । तस्सेव हदसमुप्पाइदजहण्णाणुभागसंतकम्ममणंतगुणं । बादरेइंदिएण हदसमुप्पाइदजहण्णाणुभागसंतकम्ममणंतगुणं । वेई दिएण जहण्णाणु०संतकम्ममणंतगुणं । तेइंदिएण जहण्णाणु०अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिके अनुभागबन्धका जघन्य बन्धरूपसे ग्रहण क्यों नहीं किया ? समाधान-नहीं, क्योंकि वहां होनेवाले जघन्य अनुभागबन्धसे वहीं प्राप्त होनेवाला अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा पाया जाता है। शंका-यदि ऐसा है तो संयमके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि जीवके अनुभागसत्कर्मका ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवकी सर्वोत्कृष्ट विशुद्धिसे संयमके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती संज्ञी पञ्चेन्द्रिय मिथ्यदृष्टि जीवके जो विशुद्धि होती है वह अनन्तगुणी होती है और उस विशुद्धिद्वारा उस अनुभागका घात हुआ है ? समाधान-नहीं, क्योंकि सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवके जघन्य अनुभागसत्कमसे उसके अनन्तगुणा अनुभागसत्कर्म पाया जाता है। शंका-सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवके जघन्य अनुभागसत्कर्मसे उसका जघन्य अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-संयमके अभिमुख हुए सर्वविशुद्ध अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि जीवके जो जघन्य अनुभागबन्ध होता है वह सबसे थोड़ा है। उससे सर्वविशुद्ध असंज्ञी पञ्चेन्द्रियके होनेवाला जघन्य अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है । उससे चौइन्द्रिय जीवके होनेवाला जघन्य अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है। उससे तेइन्द्रिय जीवके होनेवाला जघन्य अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है । उससे दोइन्द्रिय जीवके होनेवाला जघन्य अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है। उससे बादर एकेन्द्रिय जीवके होनेवाला जघन्य अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है। उससे सर्वविशुद्ध सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तक जीवके होनेवाला जघन्य अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है। उससे उसी जीवके घातसे उत्पन्न किया गया जघन्य अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा है। उससे बादर एकेन्द्रिय जीवके द्वारा घातसे उत्पन्न किया गया जघन्य अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा है। उससे दोइन्द्रिय जीवके द्वारा घातसे उत्पन्न किया गया जघन्य अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा है। उससे तेइन्द्रिय जीवके द्वारा १. प्रा० प्रतौ अणंतगुणासगिणपंचिदिय- इति पाठः । २. ता. प्रतौ तदणंतगुणत्र कत्ता णम्वदे ति पाठ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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