SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गा० २२ ] अणुभागविहत्तीए हाणपरूवणा ३३७ इच्छिज्जमाणे एगाणुभागहाणस्स जहण्णवग्गणप्पहुडि जावुक्कस्सहाणुकस्सवग्गणे त्ति कमवडीए अवहिदपदेसपरूवणाए अभावो होदि, एगपरमाणुम्मि उक्कस्साणुभागाधारम्मि सेसाणंतपरमाणणमभावादो। तेण णेदं घडदि त्ति ? ण, जत्थ एसो उक्कस्साणुभागहाणपरमाणू अत्थि तत्थ किमेसो एक्को चेव होदि आहो अण्णे' वि अत्थि ति पुच्छिदे एक्को चेव ण होदि अणंतेहि तत्थ कम्मक्खंधेहि होदव्वं तेसिं च अवहाणकमो एसो ति जाणावण तप्परूवणाकरणादो। जहा जोगहाणे सव्वजीवपदेसाणं सव्वजोगाविभागपडिच्छेदे घेत्तण हाणपरूवणा कदा तहा एत्थ किण्ण कीरदे ? ण, तथा कीरमाणे अधहिदिगलणाए परपयडिसंकमेण अणुभागकंडयचरिमफालिं मोत्तण दुचरिमादिफालीसु च अणुभागहाणस्स घादप्पसंगादो। ण च एवं, कंडयघादं मोत्तूण अण्णत्थ तग्घादाभावादो। तम्हा एत्थ जोगहाणो व्व पज्जवडियणयो णावलंबेयव्वो । किमहमेत्थ दव्वहियणयो चेव अवलंबिज्जयि ? हिदीए इव पदेसगलणाए अणुभागघादो पत्थि त्ति जाणावण । जदि मिच्छत्तस्स जहण्णाणुभागबंधहाणमिच्छिज्जदि तो संजमाहिस्थान माना जाता है तो एक अनुभागस्थानमें जघन्य वर्गणासे लेकर उत्कृष्ट स्थानकी उत्कृष्ट वर्गणा पर्यन्त क्रमसे बढ़ते हुए प्रदेशोंके रहनेका जो कथन किया जाता है उसका अभाव प्राप्त होता है, क्योंकि उत्कृष्ट अनुभागके आधारभूत एक परमाणुमें शेष अनन्त परमाणा का अभाव है। अत: अनुभागस्थानका उक्त लक्षण घटित नहीं होता है। समाधान-ऐसा कहना ठीक नहीं है, क्योंकि जहाँ यह उत्कृष्ट अनुभागस्थानवाला परमाणु है वहां क्या यह एक ही परमाणु है या अन्य भी परमाणु हैं ऐसा पूछे जानेपर कहा जायगा कि वहां वह एक ही परमाणु नहीं है किन्तु वहां अनन्त कर्मस्कन्ध होने चाहिए और उन कर्मस्कन्धोंके अवस्थानका यह क्रम है यह बतलानेके लिये अनुभागस्थानकी उक्त प्रकारसे प्ररूपणा की है। शंका-जैसे योगस्थानमें जीवके सब प्रदेशोंकी सब योगोंके अविभागी प्रतिच्छेदोंको लेकर स्थान प्ररूपणा की है वैसा कथन यहां क्यों नहीं करते ? समाधान-नहीं, क्योंकि वैसा कथन करनेपर अधःस्थितिगलनाके द्वारा और अन्य प्रकृति रूप संक्रमणके द्वारा अनुभागकाण्डककी अन्तिम फालिको छोड़कर द्विचरम अादि फालियों में अनुभागस्थानके घातका प्रसंग आता है। किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि काण्डकघातको छोड़कर अन्यत्र उसका घात नहीं होता। अतः यहाँ योगस्थानकी तरह पर्यायर्थिकनयका अवलम्बन नहीं लेना चाहिए। शंका-यहां पर द्रव्यार्थिक नयका ही अवलम्बन किसलिए लिया गया है ? समाधान-प्रदेशोंके गलनेसे जैसे स्थितिघात होता है वैसे प्रदेशोंके गलनेसे अनुभागका घात नहीं होता यह बतलानेके लिए यहां द्रव्यार्थिकनयका अवलम्बन लिया गया है। शंका-यदि मिथ्यात्वका जघन्य अनुभागबन्धस्थान इष्ट है तो संयमके अभिमुख हुए १, ता. प्रतौ अपणो वि इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy