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________________ ३०६ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ ढीणं सव्वत्थोवा उक्कसिया वडी। हाणी अवहाणं च दो वि सरिसाणि अणंतगुणाणि। एवं मणुसअपज्ज। ५२८. आणदादि जाव सवसिद्धि ति छब्बीसं पयडीणमुक्क० हाणी अवद्वाणं च दो वि सरिणाणि । णवरि आणदादि गवगेवज्जा त्ति अणंताणु०४ सव्वत्थोवा उक्क० वड्डी । हाणी अवहाणं च अणंतगुणं । एवं जाणिदण णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति । ५२६. जहण्णए पयदं । दुविहो गिद्द सो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छत्त-अढक० ज० वड्डी हाणी अवहाणाणि तिण्णि वि सरिसाणि । सम्मत्त० सव्वत्थोवा जह० हाणी। अवहाणमणंतगुणं । अणंताणु०चउक्क० सव्वत्थोवा ज. वडी। हाणी अवहाणाणि दो वि सरिसाणि अणंतगुणाणि । चदुसंज०-पुरिस० सव्वत्थोवा ज० हाणी । अवहाणमणंतगुणं । वड्डी अणंतगुणा । एवमित्थि-णqसयवेदाणं । छण्णोक० सव्वत्थोवा जहण्णहाणी अवहाणं च । वडी अणंतगुणा। सम्मामि० जह० हाणी अवहाणाणि दो वि सरिसाणि । एवं तिएहं मणुस्साणं । णवरि मणुसपज. इत्थि० छण्णोकसायभंगो । मणुस्सिणी० पुरिस०-णस० छण्णोकभंगो । ६५३०. आदेसेण णेरइएसु वावीसंपयडीणं तिण्ण पदा सरिसा । अणंताणु०चउक० ओघं। सम्मत्त० णत्थि अप्पाबहुअं। एवं सत्तसु पुढवीसु तिरिक्खचउक्क० और अवस्थान दोनों समान हैं किन्तु उत्कृष्ट वृद्धिसे अनन्तगुणे हैं। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तकोंमें जानना चाहिए। ५२८. आनतसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट हानि और अवस्थान दोनों समान हैं। इतना विशेष है कि आनतसे लेकर नवप्रैवेयक तकके देवोंमें अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी उत्कृष्ट वृद्धि सबसे अल्प है । उत्कृष्ट हानि और अवस्थान अनन्तगुणे हैं। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये। ५२९. अब जघन्य का प्रकरण है। निर्देश दो प्रकार का है- ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और आठ कषायोंकी जघन्य वृद्धि, जघन्य हानि और अवस्थान तीनों ही समान है । सम्यक्त्वकी जघन्य हानि सबसे अल्प हे । उससे अवस्थान अनन्तगुणा है। अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी जघन्य वृद्धि सबसे अल्प है। जघन्य हानि और अवस्थान दानों ही समान हैं; किन्तु जघन्य वृद्धि से अनन्तगुण है। चारा संज्वलन और पुरुषवदकी जघन्य हानि सबसे अल्प है। उससे जघन्य अवस्थान अनन्तगणा हे। उससे जघन्य वृद्धि अनन्तगणी है। इसी प्रकार स्त्रीवेद और नपुंसकवेदकी अपेक्षा अल्पबहुत्व जानना चाहिए । छह नोकषायोंकी जघन्य हानि और अवस्थान सबसे थोड़े हैं। उनसे जघन्य वृद्धि अनन्तगुणी है। सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य हानि और अवस्थान दोनों ही समान है । इसी प्रकार तीन प्रकारक मनुष्योंमें जानना चाहिए । इतना विशेष है कि मनुष्य पयाप्तकोंम स्त्रीवदका भङ्ग छह नाकषायोके समान है और मनुष्यनियों में पुरुषवद और नपुंसकवदका भङ्ग छह नाकषायोंक समान है। ५३०. आदेशसे नाराकयाम बाईस प्रकातयोक तीनों पद समान हैं। अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भङ्ग आघकी तरह है। सम्यक्त्वका अल्पबहुत्व नहा ह । इसी प्रकार साता पृथिावयोम सामान्य तियञ्च, पञ्चेन्द्रियातयञ्च, पञ्चन्द्रियतियश्च पयाप्त, पञ्चेन्द्रियतियंञ्चयोनिनी, सामान्य देव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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