SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ कस्स ? असण्णिपच्छायदेण हदसमुप्पत्तियकम्मेणागदेण अणंतभागेण वडिदूण बंधे तस्स जहणिया वड्डी । तम्मि चेव खंडयघादेण घाइदे जह० हाणी। एगदरत्थ अवहाणं । सम्मत्त० जहणिया हाणी कस्स ? चरिमसमयअक्खीणदंसणमोहणीयस्स । अणंताणु०चउक्क० ओघं । एवं पढमपुढवि-देवोघं ति । विदियादि जाव सत्तमि त्ति वावीसंपयडीणं जहणिया वड्डी कस्स ? मिच्छाइहिस्स तप्पाओग्गअणंतभागेण वडिदस्स । तम्हि चेव घादिदे जहणिया हाणी । एगदरत्थ अवहाणं । अणंताणु० चउक्क० ओघं । ५२४. तिरिक्खेसु वावीसं पयडीणं जह० वड्डी कस्स ? सुहुमेइंदिएण जहण्णाणुभागसंतकम्मिएण अणंतभागेण वड्डिदृण पबद्धे जहणिया वड्डी। तम्मि चेव घाइदे जहणिया हाणी। एगदरत्थ अवहाणं । सम्मत्त-अणंताणु० चउक्क० जेरइयभंगो । पंचिंदियतिरिक्वतिएसु वावीसं पयडीणं जह० वडी कस्स ? सुहुमेइंदियजहण्णाणुभागसंतकम्मेण आगंतूण अणंतभागेण वडिदण पबद्धे जह० वड्डी। तम्हि चेव घाइदे जहण्णि. हाणी । एगदरत्थ अवहाणं । सम्मत्त-अणंताणु० चउक्क० तिरिक्खोघं । णवरि जोणिणी० सम्म०वजं । पंचिंदियतिरिक्खअपज्ज० वावीसं पयडीणमेवं चेव । अणंताणु० चउक्क० मिच्छत्तभंगो। एवं मणुसअपज्ज० । भवण०-वाण. पढमपुढविभंगी। वृद्धि किसके होती है ? हतसमुत्पत्तिक कर्मके साथ असंज्ञी पर्यायसे आकर जो नरकमें जन्म लेता है और सत्तामें स्थित अनुभागसे अनन्तभागवृद्धिको लिए हुए बंध करता है उसके जघन्य वृद्धि होती है। और उस बढ़े हुए अनुभागका काण्डक घातके द्वारा घात किए जाने पर जघन्य हानि होती है। इन्हीं दोनोंमेंसे किसी एकके जघन्य अवस्थान होता है । सम्यक्त्वकी जघन्य हानि किसके होती है ? दर्शनमोहके क्षपकके अन्तिम समयमें होती है। अनन्तानुबन्धी चतुष्कका भङ्ग ओघके समान है। इसी प्रकार पहली पृथिवी और सामान्य देवोंमें जानना चाहिए। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियोंमें बाईस प्रकृतियोंकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जघन्य वृद्धिके योग्य अनन्तभागवृद्धिसे युक्त मिथ्यादृष्टि जीवके होती है । उसीका घात करने पर जघन्य हानि होती है। दोनों अवस्थाओंमेंसे किसी एक जगह जघन्य अवस्थान होता है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भङ्ग ओघके समान है। ५२४. तिर्यञ्चोंमें बाईस प्रकृतियोंकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जघन्य अनुभागकी सत्तावाले सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवके द्वारा अनन्तभागवृद्धिरूप बन्ध करने पर जघन्य वृद्धि होती है। उसीका घात कर देने पर जघन्य हानि होती है। दोनोंमेंसे किसी एक जगह जघन्य अवस्थान होता है। सम्यक्त्व प्रकृति और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भङ्ग नारकियोंके समान है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्त और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनियोंमें बाईस प्रकृतियोंकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ? जघन्य अनुभागकी सत्तावाला सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें जन्म लेकर जब अनन्तभागवृद्धिको लिए हुये अनुभागका बन्ध करता है तो उसके जघन्य वृद्धि होती है। उसीका घात करने पर जघन्य हानि होती है। तथा दोनोंमेंसे किसी एक जगह जघन्य अवस्थान होता है। सम्यक्त्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भङ्ग तिर्यञ्चोंके समान है। इतना विशेष है कि पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिनियोंमें सम्यक्त्व प्रकृतिको छोड़ देना चाहिए । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें बाईस प्रकृतियोंकी वृद्धि आदिका स्वामिपना इसी प्रकार है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कका भङ्ग मिथ्यात्वके समान है। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तकोंमें जानना चाहिए । भवनवासी और व्यन्तरोंमें पहली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy