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________________ गा० २२ ) अणुभागविहत्तीए अंतरं २४७ वत्तव्वं, सादिरेयवस्संतरत्तेण विसेसाभावादो। कोषसंजलणस्स दो वस्साणि अंतरं किण्ण होदि ? ण, सव्वेसिमंतराणमेगादिसंजोगजणिदोणं छम्मासणियमाभावादो । एवं चुण्णिसुत्तमस्सिदूण अंतरपरूणं करिय संपहि उच्चारणमस्सिदूण परूवेमो । ४१५. जहण्णए पयदं। दुविहो णिद्दे सो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छत्तअह-कसा० जहण्णाजहण्णाणु० णत्थि अंतरं। सम्मत्त-सम्मामि०-लोभसंज०छण्णोक. जहण्णाणु० ज० एगस०, उक० छम्मासा। अज० णत्थि अंतरं । अणंताणुचउक्क० जहण्णाणु० ज० एगस०, उक्क असंखे० लोगा। अज० पत्थि अंतरं । तिण्णिसंज०-पुरिस० जहण्णाणु० ज० एगस०, उक्क. वासं सादिरेयं । अज० णत्थि अंतरं । इत्थि-णQसजहण्णाण० ज० एगस०, उक्क. वासपुधत्तं । अज० णत्थि अंतरं। एवं मणस्सोघं । णवरि मिच्छत्त-अढकसा० जह० ज० एगस०, उक्क० असंखे लोगा। - ४१६. आदेसेण णेरइएमु छब्बीसं पयडीणं जहण्णाणु० ज० एगस०, उक्क० समाधान-क्यो कि सूत्रमें पुरुषवेदके जघन्य अनुभागसत्कर्मका उत्कृष्ट अन्तर एक वर्षसे कुछ अधिक बतलाया है। इससे जाना कि सभी अन्तरो'का प्रमाण छः मास नहीं होता। इसी प्रकार तीनो संज्वलन कषायोंका भी अन्तर कहना चाहिये, क्योंकि साधिक एक वषप्रमाण अन्तरसे उसमें कुछ विशेषता नहीं है। शंका-संज्वलन क्रोधका अन्तर दो वर्ष क्यो नहीं है ? समाधान नहीं, क्या कि एकादि संयोगसे उत्पन्न हुए सभी अन्तर छह मासप्रमाण होते हैं ऐसा कोई नियम नहीं है। तात्पर्य यह है कि क्रोध, मान, माय और लोभ उदयसे छह छह माहके अन्तरसे क्षपकश्रोणि पर चढ़ता है ऐसा कोई नियम नहीं है, अतः तीनों संज्वलनों के जघन्य अनुभागका उत्कृष्ट अन्तर दो वर्षे न कह कर साधिक एक वर्ष कहा है। इस प्रकार चूर्णिसूत्रके आश्रयसे अन्तरका कथन करके अब उच्चारणाके आश्रयसे अन्तर का कथन करते हैं ३१५. जघन्यका कथन अवसर प्राप्त है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे मिथ्यात्व और आठ कषायोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागका अ.तर नहीं है। सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, संज्वलनलोभ और छह नोकषायोंके जघन्य अनुभागका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह मास है। अजघन्य अनुभागका अन्तर नहीं है । अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य अनुभागका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है । अजघन्य अनुभागका अन्तर नहीं है। तीन संज्वलन कषाय और पुरुषवेदके जघन्य अनुभागका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ अधिक एक वर्ष है । अजघन्य अनभागका अन्तर नहीं है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागसत्कर्मका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण है। अजघन्य अनुभागका अन्तर नहीं है। इसी प्रकार सामान्य मनुष्यों में जानना चाहिए। इतना विशेष है कि मिथ्यात्व और आठ कषायोंके जघन्य अनभागका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। * ४१६. आदेशसे नारकियो में छब्बीस प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागका जघन्य अन्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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