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________________ २३८ जयधवलासहिदे कषायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ $ ३८५. कुदो अप्पप्पणो खवणाए चरिमाणुभागखंडयम्मि जादजहण्णाणुभागस्स अंतोमुहुतं मोत्तूण अहियकालाणुवलंभादो। तं पि कुदो ? उकीरणद्धाए उक्कस्साए वि अंतोमुहुत्तपमाणत्तादो। उक्कस्सकालो असंखेज्जावलियमेत्तो किण्ण होदि ? ण, संखेन्जक्कीरणद्धाणं समूहम्मि असंखेज्जावलियाणं संभवविरोहादो । तं पि कुदो णव्वदे ? अंतोमुहुचमिदि सुत्तणि सादो। एवं चुपिणासुतमस्सिदूण जहणणाणुभागकालपरूवणं करिय संपहि उच्चारणमस्सिदूण कस्सामो। ... ३८६. जहएणए पयदं। दुविहो णि सो-ओघेण आदेसैण य । ओघेण मिच्छत्त-अहक० जहण्णाजहरणाण. सव्वद्धा। सम्मत्त० जहएणाणु० ज० एगस०, उक्क० संखेज्जा समया । अज. सव्वद्धा । सम्मामि० जहएणाणु० जहएणुक० अंतोमु० । अज. सव्वद्धा। अणंताणु०चउक्क० जह० ज० एगस, उक्क० आवलि. असंखे०भागो। अज० सव्वद्धा । छण्णोक. जहणाण. जहएणुक • अंतोमु०। अज. सव्वद्धा । चदुसंज-तिगिणवेद० जहएणाणु० ज० एगस०, उक्क० संखेज्जा समया । अज० सव्वद्धा । ६३८५. क्योंकि अपनी अपनी क्षपणावस्थाके अन्तिम अनुभागकाण्ड कमें इन प्रकृतियोंका जघन्य अनुभाग होता है, अत: उसका काल अन्तमुहूर्तसे अधिक नहीं पाया जाता है। शंका-उसका काल अन्तर्मुहूर्तसे अधिक क्यों नहीं पाया जाता है। समाधान-क्योंकि उत्कीरणका उत्कृष्ट काल भी अन्तर्मुहूर्त प्रमाण ही है। शंका-उत्कृष्ट काल असंख्यात आवली प्रमाण क्यों नहीं है ? समाधान-नहीं, क्योंकि संख्यात उत्कीर्णकालोंके समूहमें असंख्यात आवलियाँ नहीं हो सकती हैं। शंका-यह किस प्रमाणसे जाना ? समाधान-क्योंकि सूत्र में अन्तर्मुहूर्त कालका निर्देश किया है। इस प्रकार चूर्णिसूत्रके आश्रयसे जघन्य अनुभागके काल का कथन करके अब उच्चारणाके आश्रयसे कथन करते हैं। ६३८६. जघन्यके कथनका अवसर है । निर्देश दो प्रकारका है--ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्व और आठ कषायोंके जघन्य और अजघन्य अनुभागका काल सर्वदा है। सम्यक्त्वके जघन्य अनुभागका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अजघन्य अनुभागका काल सर्वदा है। सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूत है। अजघन्य अनुभागका काल सर्वदा है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कके जघन्य अनुभागका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। अजघन्य अनुभागका काल सर्वदा है। छह नोकषायोंके जघन्य अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मु ते है। अजघन्य अनुभागका काल सर्वदा है। चार संज्वलन और तीन वेदोंके जघन्य अनुभागका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अजघन्य अनुभागका काल सर्वदा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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