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________________ MINAawvniwww गा० २२] अणुभागविहत्तीए कालो ६३७६. आदेसेण णेरइएमु छब्बीसंपयडीणमुक्कस्साणुभागो केव० ? ज० एगस०, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । अणुक्क० सव्वद्धा। सम्मत्त-सम्मामि० उक्क० सव्वद्धा। सम्मत्त० अणुक० ज० एगसमओ, उक्क० अंतोमुः। एवं पढमपुढवि०तिरिक्वतिय-सोहम्मादि जाव सहस्सारे ति। विदियादि जाव सत्तमि ति एवं चेव । णवरि सम्मत्त अणुक्क० णत्थि । एवं जोणिणी--पंचिदियतिरिक्खअपज्ज०--भवण.-- वाण-जोदिसिए त्ति । ३७७. मणुस्सेसु सम्बपयडीणमुक्क० अणुक्क० ओघं । णवरि उक्क० जहण्णेण एगसमओ छब्बीसंपयडीणं । मणुसपजत्त-मणुसिणीसु छब्बीसंपयडीणमुक्क० ज० एगस०, उक. अंतोमु० । अणुक० सव्बद्धा। सम्मत्त-सम्मामि० उक० सव्वद्धा। अणुक० जहण्णुक० अंतोमु०। णवरि मणुसपज्जत्तएसु सम्मत्त० अणुक० ज० एगस० मणुसिणीसु सम्मत्त अणुभागस्स एगसमओ णत्थि । मणुसअपज्ज. छब्बीसं पयडीणं उक्क० ज० एगस० अणुक्क० ज० अंतो०, उक्क० दोहं पि पलिदो० असंखे० भागो। आणदादि जाव सव्वष्टसिद्धि ति छब्बीसं पयडीणं उक्कस्साणुकस्साणुभाग० सव्वद्धा। सम्मत्त-सम्मामि देवोघं । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति । .. ६३७६. आदेशसे नारकियों में छब्बीस प्रकृतियो के उत्कृष्ट अनुभागका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट अनुभागका काल सर्वदा है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागका काल सर्वदा है। सम्यक्त्वके अनुत्कृष्ट अनुभागका जघन्य एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमुहू है। इसी प्रकार पहली पृथिवी, सामान्य तिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्त, सामान्य देव और सौधर्म स्वर्गसे लेकर सहस्रार कल्प तकके देवा में जानना चाहिए। दूसरीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियों में इसी प्रकार जानना चाहिए। इतना विशेष है कि सम्यक्त्वका अनुकृष्ट अनुभाग वहाँ नहीं होता । इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तियञ्चयोाननी, पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त, भवनवासा, व्यन्तर और ज्योतिषी देवों में जानना चाहिए। ३७७. सामान्य मनुष्यों में सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनभागका काल ओघ की तरह है। इतना विशेष है कि छब्बीस प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागका जघन्य काल एक समय है। मनुष्यपर्याप्त और मनयिनियों में छब्बीस प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अनत्कृष्ट अनुभागका काल सर्वदा है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागका काल सर्वदा है। अनुत्कृष्ट अनुभागका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इतना विशेष है कि मनुष्यपर्याप्तकोंमें सम्यक्त्वके अनुत्कृष्ट अनुभागका जघन्य काल एक समय है। मनुष्यनियोंमें सम्यक्त्वके अनुभागका एक समय काल नहीं है । मनुष्य अपर्याप्तकोंमें छब्बीस प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागका जघन्य काल एक समय है । अनुत्कृष्ट अनभागका जघन्य काल अन्तर्मुहर्त है और दोनोंका उत्कृष्ट काल पल्य के असंख्यातवें भागप्रमाण है। आनत स्वर्गसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें छब्बीस प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागका काल सर्वदा है । सम्यक्ष और सभ्यग्मिथ्यात्वका काल सामान्य देवोंकी तरह है। इस प्रकार जानकर अनाहारी पर्यन्त ले जाना चाहिये। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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