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________________ १८२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे . [अणुभागविहत्ती ४ कम्मस्स, सो तेण जहण्णाणुभागसंतकम्मेण एइंदिरो वा बेइंदिओ वा तेइंदिओ वा चरिदिओ वा सण्णी वा असण्णी वा सुहुमो वा बादरो वा पज्जत्तो वा अपज्जत्तो वा होदि जाव तण्ण वड्ढदि ताव तस्स विहत्तिओ। सम्मत्त० जहण्णाणु० कस्स ? अण्णद. चरिमसमयअक्खीणदंसणमोहणीयस्स । सम्मामि० जहण्णाणु० कस्स ? अण्णद० दंसणमोहणीयक्खवयस्स अपच्छिमे अणुभागखंडए वट्टमाणस्स । अणंताणु०चउक्क० जहण्णाणु० कस्स ? विसंजोएदूण पढमसमयसंजुत्तस्स तप्पाओग्गविमुद्धस्स जहण्णाणुभागसंतकम्मं होदि । कोध-माण-मायासंजलण. जह० कस्स ? अण्णद० कोध-माणमायावेदयखवगस्स चरिमसमयअणुभागबंध पडि चरिमसमयअसंकामयस्स । लोभसंजल० जहण्णाणु० कस्स ? खवगस्स चरिमसमयसकसायिस्स । पुरिसवेदस्स जहण्णाणुभागसंतकम्म कस्स ? पुरिसवेदक्खवयस्सै चरिमसमयअणुभागबंधं पडि चरिमसमयअसंकामयस्स । इत्थि० ज० कस्स ? अण्णद० खवयस्स इत्थिवेदोदएण उवहिदस्स चरिमसमयइत्थिवेदयस्स । णसयवेद० जह० कस्स ? अण्णद० गqसयवेदोदएण उवहिदस्स चरिमसमयणqसयवेदयस्स । छण्णोकसाय० ज० कस्स ? अण्णद० खवगस्स चरिमे अणुभागखंडए वट्टमाणस्स । २७३. आदेसेण रइएसु मिच्छत्त-बारसक०-णवणोक० जह० कस्स ? जो जीवने अनुभागका घात करके जघन्य अनुभागसत्कर्म उत्पन्न किया है उसके होता है । तथा वह उस जघन्य अनुभागसत्कर्मके साथ मरकर एकेन्द्रिय अथवा दोइन्द्रिय, अथवा तेइन्द्रिय, अथवा चौइन्द्रिय, अथवा असंज्ञी, अथवा संज्ञी, सूक्ष्म अथवा बादर, पर्याप्त अथवा अपर्याप्त होकर जब तक उसे नहीं बढ़ाता है तब तक उसका स्वामी होता है। सम्यक्त्वका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? अक्षीणदर्शनमोहीके अन्तिम समयमें होता है। सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? अन्तिम अनुभागकाण्डकमें वर्तमान दर्शनमोहके क्षपकके होता है। अनन्तानबन्धी चतुष्कका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? अनन्तानुबन्धीका विसंयोजन करके पुनः उससे संयुक्त हुए तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाले प्रथम समयवर्ती जीवके जघन्य अनुभागसत्कर्म होता है। संज्वलन क्रोध, संज्वलन मान और संज्वलन मायाका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? क्रोध, मान और मायाका वेदन करनेवाले तथा अन्तिम समयमें होनेवाले अनभागबन्धकी अपेक्षा अन्तिम समयवर्ती असंक्रामक क्षपक जीवके होता है । संज्वलन लोभका जघन्य अनभागसत्कर्म किसके होता है ? अन्तिम समयवर्ती क्षपक सकषायिक जीवके होता है। पुरुषवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? अन्तिम समयमें होनेवाले अनुभागबन्धकी अपेक्षा अन्तिम समयवर्ती असंक्रामक पुरुषवेदीके होता है । स्त्रीवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? स्त्रीवेदके उदयसे क्षपकश्रेणी पर चढ़नेवाले अन्तिम समयवर्ती स्त्रीवेदी क्षपक जीवके होता है। नपुंसक वेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? नपुंसकवेदके उदयसे श्रेणी पर चढ़नेवाले अन्तिम समयवर्ती नपुंसकवेदी चपक जीवके होता है। छ नोकषायोंका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? अन्तिम अनुभागकण्ड कमें वर्तमान क्षपकके होता है। 3 २७३. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, बारह कषाय और नव नोकषायोंका जघन्य १ श्रा० प्रती चरिमसमयं असंकामयस्स | लोभसंजल जहरणाणु० कस्स० पुरिसवेदक्खवयस्स इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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