________________
१६६
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [अणुभागविहत्ती ४ एवं, अणुभागखंडयघादाभावेण तत्थ उक्कस्साणुभागसंतकम्मियम्मि जहण्णत्तविरोहादो । तम्हा अवणिज्जमाणए अपच्छिमे अणुभागखंडए वट्टमाणयस्से त्ति सुहासियं ।
६ अणंताणुबंधीणं जहएणयमणुभागसंतकम्मं कस्स ? $ २४६. सुगमं ।
* पढमसमयसंजुत्तस्स । अन्तिम फालीमें भी वर्तमान जीवके जघन्य अनुभागका प्रसंग आता है। किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि अनुभागकाण्डकका घात न होनेसे वहां उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म पाया जाता है, अत: वह जघन्य नहीं हो सकता। इसलिये 'अपनीयमान अन्तिम अनुभागकाण्डकमें वर्तमान जीवके' यह सूत्रवचन ठीक है।
विशेषार्थ-स्थितिको घटानेके लिये स्थितिका काण्डकघात किया जाता है और अनुभागको घटानेके लिये अनुभागका काण्डकघात किया जाता है। काण्डकघातका विधान इस प्रकार हैकल्पना कीजिये कि उदयस्वरूप किसी कर्म की स्थिति ४८ समय की है और चूकि एक समयमें एक निषेकका उदय होता है, अतः उसके ४८ ही निषेक हैं। अब उसमेंसे समयकी स्थिति घटानी है तो ऊपरके ८ निषेकोंके परमाणुओंको लेकर शेष ४० निषेकोंमेंसे आठ निषेकोंके पासके दो निषेकोंको छोड़कर बाकीके ३८ निषेकोंमें मिलाना चाहिये। कुछ परमाणु पहले समयमें मिलाये,कुछ दूसरे समयमें मिलाये। इस तरह अन्तर्मुहूर्त काल तक ऊपरके आठ निषेकोंके परमाणुओंको नीचेके निषेकों में मिलाते मिलाते उनका अभाव कर देनेसे प्रकृत कर्म की स्थिति ४८ समयसे घटकर ४० समयकी रह जाती है। यह एक स्थितिकाण्डक घात हुआ। इसी प्रकार आगे भी जानना चाहिये। जैसे स्थितिकाण्डकके द्वारा स्थितिका घात किया जाता है वैसे ही ऊपरके अधिक अनुभागवाले स्पर्धकोंका नीचेके कम अनुभागवाले स्पर्धकोंमें क्षेपण करके अनुभागकाण्डकके द्वारा अनुभागका घात किया जाता है। तथा प्रथम समयमें जितने द्रव्यको अन्य निषेकोंमें मिलाया जाता है उसे प्रथम फाली कहते हैं और दूसरे समयमें जितने द्रव्यको अन्य निषेकोंमें मिलाया जाता है उसे द्वितीय फाली कहते हैं। इसी प्रकार अन्तिम समयमें जितने द्रव्यको अन्य निषेकोंमें मिलाया जाता है उसे चरम फाली कहते हैं। - मूलमें बतलाया है कि जब मिश्र प्रकृतिके अन्तिम अनुभागकाण्डकका अपनयन किया जाता है तो उस समयमें उसका जघन्य अनुभाग होता है, इस पर यह शंका की गई कि जब अन्तिम स्थितिकाण्डका घात किया जाता है तब मिश्र प्रकृतिका जघन्य अनुभाग क्यों नहीं होता तो इसका यह समाधान किया गया कि यदि ऐसा माना जायगा तो मिश्र प्रकृति की उद्वेलना करनेवाले मिथ्याष्टि जीवके भी जब वह मिश्र प्रकृतिके अन्तिम स्थितिकाण्डक की अन्तिम फालीमें वर्तमान रहता है तब मिश्र प्रकृतिका जघन्य अनुभाग हो जायगा, किन्तु ऐसा नहीं है, उसके स्थिति जरूर घट जाती है किन्तु अनुभाग नहीं घटता। अत: दर्शनमोहका क्षपण करनेवाला जीव जब मिश्रप्रकृतिके अन्तिम अपनीयमान अनुभागकाण्डकमें वर्तमान रहता है तब उसके मिश्र प्रकृतिका जघन्य अनुभागसत्कर्म होता है।
* अनन्तानुबन्धीका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? ६२४६. यह सूत्र सुगम है। * प्रथम समयवर्ती संयुक्त जीवके होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org