________________
एवमक
गा० २२ ]
अणुभागविहत्तीए सामित्तं उवसामणाए सव्वपयडीणं हिदि-अणुभागकंडएसु णिवदमाणेसु कथमेदासिं दोण्हं चेव पयडीणमणुभागघादो पत्थि ? ण, भिण्णजाइत्तादो। अपुव्व-अणियट्टिभावेण सरिसपरिणामेहिंतो कथं भिण्णाणं कज्जाणं समुप्पत्ती ? ण, कज्जभेदण्णहाणुववत्तीदो कारणाणं पि भेदसिद्धीए।
एवमुक्कस्साणुभागसामित्तं समत्तं । * मिच्छत्तस्स जहणणयमणुभागसंतकम्मं कस्स ?
२३८. सुगममेदं । * सुहमस्स?
$ २३६. एइंदियग्गहणमेत्थ किण्ण कयं ? ण, एइंदिए मोत्तूण अण्णत्थ मुहुमभावो पत्थि ति एइंदियविण्णाणुप्पत्तीदो। जदि एवं, तो णिगोदग्गहणं कायव्वं, अण्णत्थ जहण्णाणुभागसंतकम्माभावादो ? ण, सुहुमणिद्दे सादो चेव तदुवलंभादो । तं जहा-जो सुहुमेइंदिओ त्ति वुत्ते पासिंदियणाणेण मुहुमणामकम्मोदएण च जो मुहुमत्तं उपशामनामें जब सब प्रकृतियोंके स्थितिकाण्डक और अनुभागकाण्डकका घात होता है तो इन दो प्रकृतियोंके अनुभागका घात क्यों नहीं होता ?
समाधान-नहीं, क्योंकि अन्य प्रकृतियोंसे इनकी जाति भिन्न है ।
शंका-अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणरूप सदृश परिणामोंसे भिन्न कार्योंकी उत्पति कैसे होती है। अर्थात् दर्शनमोहके क्षपणमें भी ये परिणाम होते हैं और प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्ति आदि के समय भी ये परिणाम होते हैं। किन्तु एक जगह तो वे परिणाम सभी प्रकृतियोंके स्थिति-अनुभागका घात करते हैं और दूसरी जगह नहीं करते ऐसा भेद क्यों है ?
समाधान दोनों जगहके कार्य में भेद है। इससे सिद्ध है कि कारणमें भी भेद अवश्य है, दोनों जगहके परिणामों में भेद न होता तो कार्यमें भेद न होता। अर्थात् दर्शनमोहके क्षपणकालमें जैसे परिणाम होते हैं वैसे परिणाम प्रथम सम्यक्त्वकी उत्पत्ति आदिमें अन्यत्र नहीं होते।
___इस प्रकार उत्कृष्ट अनुभागका स्वामित्व समाप्त हुआ। * मिथ्यात्वका जघन्य अनुभामसत्कर्म किसके होता है ? ३२३८. यह सूत्र सुगम है। * सूक्ष्म जीवके होता है। $ २३६. शंका-इस सूत्रमें एकेन्द्रिय पदका ग्रहण क्यों नहीं किया ?
समाधान-नहीं, क्योंकि एकेन्द्रियको छोड़कर अन्यत्र सूक्ष्मपना नहीं है, इसलिये 'सूक्ष्म' पदसे ही एकेन्द्रियका ज्ञान हो जाता है, अत: एकेन्द्रिय पदका ग्रहण नहीं किया।
शंका-यदि ऐसा है तो निगोदका ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि निगोदियाके सिवा अन्यत्र जघन्य अनुभागसत्कर्मका अभाव है।
__समाधान नहीं, क्योंकि 'सूक्ष्म' पदके निर्देशसे ही उनका ग्रहण हो जाता है । इसका खुलासा इस प्रकार है-यहाँ सूक्ष्म एकेन्द्रिय ऐसा कहनेसे स्पर्शन इन्द्रियजन्य ज्ञानसे और सूक्ष्म नामकर्मके उदयसे जो सूक्ष्मपने को प्राप्त है अर्थात् जो ज्ञानसे भी सूक्ष्म है और पर्यायसे
२१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org