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________________ गा० २२] . अणुभागविहत्तीए सण्णा १४९ ॐ पुरिसवेदस्स अणुभागसंतकम्मं जहएणयं देसघादी एगट्ठाणियं । २०६. कुदो ? पुरिसवेदोदएण खवगसेढिमारूढेण चरिमसमयसवेदेण वर्द्धअणुभागसंतकम्मम्मि पुरिसवेदस्स जहण्णत्तग्गहणादो। दुचरिमादिसमएसु बद्धाणुभागसंतकम्मं जहण्णमिदि किण्ण गहिदं ? ण, चरिमसमयबद्ध अणुभागादो दुचरिमादिसमएसु बद्धाणुभागाणमणंतगुणत्तादो । तं कुदो णव्वदे ? चरिमसमयबद्धाणुभागादो तत्थेव उदयगदगोवुच्छाए अणुभागसंतकम्ममणंतगुणं, तत्तो सवेदयस्स दुचरिमाणुभागबंधो अणंतगुणो, तत्थेव उदयगदगोउच्छाए अणुभागसंतकम्ममणंतगुणं । एवं हेहा कमेण अोदारेदव्वं जाव पढमसमयअपुव्वकरणो त्ति एदम्हादो अप्पाबहुअसुत्तादो। पुरिसवेदचरिमाणुभागकंडयचरिमफालीए जहण्णमणुभागसंतकम्ममिदि किण्ण घेप्पदि ? ण, तत्थतणाणुभागस्स सव्वघादिवेढाणियस्स जहण्णत्ताणुववचीदो । पुरिसवेदचरिमबंयो देसघादी एगहाणिओ त्ति कदो णव्वदे ? अंतरकरणकदपढमसमयप्पहुडि मोहणीयस्स बंधो उदओ च देसघादी एगहाणिओ चि मुत्तादो । * पुरुषवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म देशघाती और एकस्थानिक होता है। ६२८९ क्योंकि पुरुषवेदके उदयसे क्षपकश्रेणि पर चढ़े हुए अन्तिम समयवर्ती सवेदकके द्वारा बाँधा गया जो अनुभागसत्कर्म है उसमें पुरुषवेदका जघन्यपना उपलब्ध होता है। शंका-उपान्त्य आदि समयोंमें बांधा गया जो अनुभागसत्कर्म है वह जघन्य है ऐसा क्यों नहीं ग्रहण किया ? समाधान नहीं, क्योंकि अन्तिम समयमें बद्ध अनुभागसे द्विचरम आदि समयोंमें बन्धको प्राप्त हुआ अनुभाग अनन्तगुणा होता है, अतः उसका ग्रहण नहीं किया। शंका-यह कैसे जाना कि अन्तिम समयमें होनेवाले अनुभागबन्धसे उपान्त्य समयमें होनेवाला अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है ? समाधान-“अन्तिम समयमें बद्ध अनुभागसे वहीं उदयगत गोपुच्छाका अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा है। उससे द्विचरम समयमें होनेवाला अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है। उससे वहीं उदयगत गोपुच्छाका अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा है। इस प्रकार अपूर्वकरणके प्रथम समय पर्यन्त क्रमसे नीचे उतारना चाहिये । इस अल्पबहुत्वको बतलानेवाले सूत्रसे जाना कि अन्तिम समयमें होनेवाले अनुभागबन्धसे उपान्त्य समयमें होनेवाला अनुभागबन्ध अनन्तगुणा है। शंका-पुरुषवेदके अन्तिम अनुभागकाण्डककी अन्तिम फालीमें जो अनुभागसत्कर्म है वह जघन्य है ऐसा क्यों नहीं ग्रहण किया ? समाधान-नहीं, क्योंकि उसमें जो अनुभाग है वह सर्वघाती और द्विस्थानिक है, अत: वह जघन्य नहीं हो सकता। शंका-पुरुषवेदका अन्तिम बन्ध देशघाती और एकस्थानिक है यह किस प्रमाणसे जाना ? समाधान-अन्तरकरण कर चुकनेके प्रथम समयसे लेकर मोहनीयका बन्ध और उदय देशघाती और एकस्थानिक होता है इस सूत्रसे जाना। १. प्रा० प्रतौ चरिमसमयवेदगबद्ध इति पाठः । २. प्रा० प्रतौ दुचरिमसमएसु इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001411
Book TitleKasaypahudam Part 05
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1956
Total Pages438
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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