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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
* मोत्तण खवगचरिमसमयइत्थिवेदयं उदयणिसेगं ।
$ २०७, मोत्तूण सव्वमित्थिवेद पदेस संतकम्मं परसरूवेण संकामिय अवदो चरिमसमयइत्थवेदओ णाम तं मोत्तूण हेट्ठा इत्थिवेदाणुभागसंतकम्मं सव्वत्थ सव्वघादी दुहाणियं तिद्वाणियं चदुट्ठाणियं वा होदि । चरिमसमयइत्थिवेदियस्स अणुभागसंतकम्म सरूवपरूवणद्वमुत्तरमुत्तं भणदि
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* तस्स देसघादी एगट्ठाणियं ।
९ २०८ तस्स चरिमसमयसवेदयस्स इत्थवेदाणुभागसंतकम्मं देसवादी एगट्ठाणियं च होदि, उदयसरूवत्तादो । उदयणिसेगाणुभागसंतकम्मं देसघादि ति कुदो णव्वदे ण, संजदासंजदप्पहूडि उवरिमगुणद्वाणेसु चदुसंजलण-णवणोकसायाणुभागसंतकम्मस्स देसघादिफद्दयाणमुदयाभावे तत्थ अणुव्वय-महव्वयाणमत्थित्तविरोहादो । एगहाणियमिदि कुदो गव्वदे ? अंतरकरणकदपढमसमए मोहणीयस्स एगहाणियो irt गहाणओ उदओ ति सुतणि सादो |
[ अणुभाग विद्दत्ती ४
जाता है। अब इस सूत्रका विषय कहनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं
* मात्र अन्तिम समयवर्त्ती क्षपक स्त्रीवेदीके उदयगत निषेकको छोड़कर शेष अनुभाग सर्वघाती तथा द्विस्थानिक, त्रिस्थानिक और चतुःस्थानिक होता है ।
२०७. छोड़कर, अर्थात क्षपकश्रेणिमें स्त्रीवेदका जो प्रदेशसत्कर्म पररूपसे संक्रामित होकर स्थित है उसे अन्तिमसमयवर्ती स्त्रीवेद कहते हैं, उसे छोड़कर इससे पूर्व स्त्रीवेदका जो अनुभागसत्कर्म है वह सर्वत्र सर्वघाती तथा द्विस्थानिक, त्रिस्थानिक और चतु:स्थानिक होता है। अब अन्तिम समयवर्ती स्त्रीवेदके अनुभागसत्कर्मका स्वरूप बतलाने के लिये आगेका सूत्र कहते हैं
* किन्तु उसका अनुभागसत्कर्म देशघाती और एकस्थानिक होता है ।
६२०८, उसका अर्थात् अन्तिम समयवर्ती सवेदकका स्त्रीवेदसम्बन्धी अनुभागसत्कर्म देशघाती और एकस्थानिक होता है; क्योंकि वह उदयस्वरूप है ।
शंका-उदयप्राप्त निषेकका अनुभागसत्कर्म देशघाती होता है यह किस प्रमाणसे जाना
जाता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि संयतासंयत से लेकर आगे गुणस्थानोंमें चार संज्वलन और नव नोकषायों के अनुभाग सत्कर्मके देशघाती स्पर्धकोंके उदयके अभाव में अणुव्रत और महाव्रतका अस्तित्व नहीं हो सकता । अर्थात् यदि इन गुणस्थानोंमें संज्वलन और नौ नोकषायोंके देशघाती स्पर्धकोंका उदय न होता तो उनमें अणुव्रत और महाव्रत भी न होते। इससे जाना जाता है कि अन्तिम समयवर्ती सवेदकके स्त्रीवेदके उदयगत निषेक देशघाती होते हैं ।
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शंका- वह अनुभाग सत्कर्म एकस्थानिक होता है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-अन्तरकरण कर चुकनेके प्रथम समय में मोहनीय कर्मका एकस्थानिक बन्ध स्थानिक उदय होता है इस सूत्र वचनके निर्देशसे जाना जाता है कि अन्तिम समयवर्ती सवेदक स्त्रीवेदका उदयगत निषेक एकस्थानिक होता है ।
१. ता० प्रतौ उदयणिसेगं इति पाठः सूर्याशत्वेन नोपलभ्यते ।
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